Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्त्रे 'जाव ईसिपब्भाराए णं भंते !' यावद् ईपत्मारभारा खलु भदन्त ! यावत् ईषत्मार भारा पृथिवीमूत्रमायाति तावत्पर्यन्तमित्यर्थः । अत्रस्थ यावत्पदेन तिर्यग्लोकोल लोकादिसूत्राणां ग्रहणं भवति एतत्सर्वं तत्रैव द्वितीयशतके अस्तिकायोद्देश के दशमे द्रष्टव्यम् अथ ईषत्पााभारा पृथिवी सूत्रमाह-'ईसिपभाराणं भंते ! पुढवी, ईषत्मग्भारा सिद्धशिले तिनाम्ना प्रसिद्धा खलु भदन्त ! पृथिवी 'लोयागासस्स कि संखेज्जइभाग ओगाढा पुच्छा' लोकाकाशस्य किं संख्येयभाग० अवगाढा पृच्छा, असंख्येयभागं वेति प्रश्नः, 'गोयमा! हे गौतम ! 'नो संखेज्जइभागं ओगाढा' नो संख्येयभागमवगाढा 'असंखेज्जइभार्ग ओगाढा' असंख्येयभागमवगाढा 'नो संखेज्जे भागे नो असंखेज्जे' नो संख्येयान् भागान् नो असंख्येयान गया है वैसा ही यहां पर यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथिवीसूत्र पर्यन्त कह लेना चाहिये यहां यावत्पद से तिर्यग् लोक, ऊर्ध्वलोक आदि सूत्रों का ग्रहण हुआ है यह सय द्वितीयशतक के १० वें अस्तिकायोद्देशक में देख लेना चाहिये। 'इसिपम्भारा णं पुढवी' हे भदन्त ! जिसका दूसरा नाम सिद्ध शिला है ऐसी ईषत्प्रारभारा नाम की जो पृथिवी है वह लोकाकाश के संख्यातवें भाग को व्याप्त करके स्थित है या असंख्यातवें भाग को व्याप्त करके स्थित है ? इस गौतम के प्रश्न पर प्रभु उत्तर देते हैं 'गोयमा ! नो संखेज्जइभागं ओगाढा' हे गौतम! ईषत्प्रारभारा पृथिवी लोकाकाश के संख्यातवें भाग को व्याप्त कर स्थित नहीं है किन्तु 'असंखेजहभागं ओगाढा' लोकाकाश के असंख्यातवें भागको व्याप्त कर स्थित है 'नो संखेज्जे भागे.' असंखेज्जे भागे.' वह लोक के संख्यात भोगों को अथवा असंख्यातभागों को भी व्याप्त થાવત ઈષપ્રાશ્મારા પૃથિવી સૂત્ર સુધી સમજી લેવું. અહિયાં યાવત્પદથી તિર્યલોક, ઉદર્વક વિગેરે ગ્રહણ કરાયા છે. આ તમામ વિષય બીજા શતકના BAvi मस्तिय देशभनिन सभ७ न. 'ईसीपब्भारा णं पुढवी'
ભગવન ઈષપ્રાગુભારા પૃથિવી-કે જેનું બીજું નામ સિદ્ધશિલા છે, તે કાકાશના સંખ્યામાં ભાગને વ્યાપ્ત કરીને રહી છે? અથવા અસંખ્યાતમાં ભાગને વ્યાપ્ત કરીને રહી છે? ગૌતમ સ્વામીના આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે छ -'गोयमा ! नो संखेज्जइभागं ओगाढा' गीतम! ४षत्प्रामा। पृथिवा astशना सध्यातमा लागने या सरीने २ही नथी ५५ 'असंखेजइभागं ओगाढा साशना असभ्यातमा लागन ८यात २ छे. 'नो संज्जे
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૩