Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०१ पुद्गलस्थ वर्णादिमत्वनिरूपणम् ५७७ 'सम्वे सीए त्ति' त्रयाणामपि प्रदेशानां शीतपरिणामस्वातू सर्वः शीतः 'देसे निदे त्ति' देशः स्निग्धः त्रयाणां मध्ये एकप्रदेशस्य स्निग्धत्वात् २, 'देसे लुक्खे' देशो रूक्ष इति, त्रयाणां पदेशानां मध्ये द्विपदेशात्मको देशो रूक्षः एकपरिणामयोयो. रेकपदेशावगाहनादिना एकत्वेन विवक्षितत्वात् इति प्रथमभङ्गविवेकः १ । 'सव्वे सीए देसे निद्धे देमा लुक वा सर्वःशीतो देशः स्निग्धो देशौ रूक्षौ-सौंऽप्यंशः शीत एकदेशः स्निग्धः तदनेकदेशौ रूक्षौ भिन्नपरिणामतयाऽनेकवच नान्तस्तृतीयः पादइति द्वितीयो भङ्गः २ । तृतीये द्वितीयपादस्तु अनेक वचः नान्तस्तदेव दर्शयति 'सव्वे सीए देसा निद्धा देसे लुक्खे' सर्वः शीतो देशी में रूक्ष हो सकता है ? इसका तात्पर्य ऐमा है कि-त्रिप्रदेशिकस्कन्ध के तीनों प्रदेशों में शीत परिणामता होने से वह सर्व रूप में शीत हो सकता है, प्रदेशों के मध्य के एक प्रदेश में स्निग्यता होने से वह देश में स्निग्ध हो सकता है तथा तीनों प्रदेशों के बीच में द्विपदेशात्मक एक देश रूक्ष हो सकता है क्योंकि एक परिणाम वाले दो प्रदेशों का एक प्रदेशावगाहन आदि होने से यहां एकत्व की विवक्षा की गई है। इस प्रकार से यह प्रथम भंग है । द्वितीय भंग इस प्रकार से है-'सव्वे सीए, देसे निद्धे देसा लुक्खा ' वह अपने सर्व अंश में शीत हो सकता है एकदेश उसका स्निग्ध हो सकता हैं और अनेक देश रूप दो प्रदेश उसके रूक्ष हो सकते हैं। यहां भिन्न परिणामवाला होने से तृतीय पद अनेक वचनान्त है २, तथा तीसरे भंग में द्वितीय पद अनेक वचनान्त है जैसे-'सव्वे सीए देसा निद्धा देसे लुक्खे ३' वह अपने सर्वांश में शीत हो सकता है 'सव्वे सीए' प्रदेश. २४धना प्रदेशमi ledi पाथी त सव' शत शीत 5 श छ. 'देसे निद्धे'- प्रशानी मध्य प्रदेशमा स्निग्यता
पाथी त देशमा नि डा श छ.२ 'देसे लुक्खे' मने त्र प्रदेश की ઢિપ્રદેશાત્મક એક દેશ રૂક્ષ થઈ શકે કેમ કે એક પરિણામવાળા બે પ્રદેશના એક પ્રદેશાવગાહન હોવાથી એકત્વની વિવક્ષા કરવામાં આવી છે ૩ આ રીતનો भी पडो संग छे. मात्र समाप्रमाणे ५२ छे.-'सव्वे सीए देसे निद्धे देसा लुक्खा' तोताना सर्वाशथी शीत छ. मने तन मेश સ્નિગ્ધ હોઈ શકે છે. અને અનેક દેશ રૂપ તેનાં બે પ્રદેશ રૂક્ષ હોઈ શકે છે અહી ભિન્ન પરિણામવાળું હોવાથી આનું ત્રીજુ પદ અનેક વચનવાળું मन छे. तथा बीत गनु मा ५४ भने क्यनवा छे. रेम-सव्वे. सीए देसा निद्धा देसे लुक्खे३' ते पाताना शिथी शीत 5 शहेछ. तथा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩