Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका २०२० उ०५ सू०२ पुद्गलस्य वर्णादिमत्वनिरूपणम् ६११ कालको नीलकः पीतकः शुक्लश्वेति तृतीयः। 'सिय कालए लोहियए हालिहए सुकिल्लए य' स्यात्-कदाचित् कालको लोहितकः पीतका शुक्लकश्चेति चतुर्थः । 'सिय नीलए लोहियए हालिद्दए सुकिल्लए य' स्यात् कदाचित् नीलको लोहितकः पीतकः शुक्लकश्चेति पञ्चमो भंगः, 'एवमेव चउक्कगसंजोए पंचभंगा' एवम् - पूर्वोक्तपकारेण एते चतुष्कसंयोगे पश्च भंगा भवन्तीति। 'एए सव्वे नउई भंगा' एते सर्वे नवतिर्भङ्गा, तथाहि-असंयोगे पश्च ५, द्विकसंयोगे चत्वारिंशत् ४०, है २ 'सिय कालए नीलए हालिद्दए सुकिल्लए य' कदाचित् वह किसी एक प्रदेश में कालेवर्ण वाला भी हो सकता है किसी एक प्रदेश में नीलेवर्णवाला भी हो सकता है किसी एक प्रदेश में पीलेवर्ण वाला भी हो सकता है और किसी एक प्रदेश में शुक्ल भी हो सकता है ३ 'सिय कालए लोहियए हालिद्दए सुक्किल्लए य' कदाचित् वह किसी एक प्रदेश में वह कृष्णवर्ण भी हो सकता है किसी एक प्रदेश में लालवर्ण वाला भी हो सकता है किसी एक प्रदेश में पीलेवर्ण वाला भी हो सकता है और किसी एक प्रदेश में शुक्लवर्ण वाला भी हो सकता है ४ 'सिय नीलए लोहियए हालिद्दर सुश्किल्लए य' कदाचित् वह किसी एक प्रदेश में नीलवर्ण वाला भी हो सकता है किसी एक प्रदेश में लालवर्ण वाला भी हो सकता है किसी एक प्रदेश में पीलेवर्ण वाला भी हो सकता है और किसी एक प्रदेश में शुक्लवर्ण वाला भी हो सकता है ५इस पूर्वोक्त प्रकार से ये चतुष्कसंयोग में पांच भंग होते हैं । 'एए सव्वे नउई भंगा' इस प्रकार से ९० भंग वर्ण को आश्रित करके यहां चतुः प्रदेशी स्कन्ध में हुए हैं असंयोग में ५ भंग द्विकसंयोग में ४०, त्रिकसंयोग
सुकिल्लए य' हाय 5 भागमा ते जा १ वाणे। डाय छे. असे ભાગમાં પીળા વર્ણવાળો હોય છે. અને કેઇ એક ભાગમાં ધોળા વર્ણવાળો પણ હોઈ શકે છે. એ પ્રમાણેને ચાર પ્રદેશી સ્કંધને ત્રીજો ભંગ બને છે. ૩. 'सिय कालए लोहियए हालिइए सुकिल्लए य' य ते पोताना 5 मे પ્રદેશમાં નીલ વર્ણવાળો હોય છે. કોઈ એક પ્રદેશમાં લાલ વર્ણવાળે પણ હોઈ શકે છે. કેઈ એક ભાગમાં પીળા વર્ણવાળ પણ હેઈ શકે છે અને કેઈ એક ભાગમાં ધેળા વર્ણવાળો પણ હોઈ શકે છે. આ રીતે પૂર્વોક્ત माथी या२ सयाजणीना म पांय सगी मने छ, 'एए सव्वे नउई भंगा' આ ચાર સગી ભંગામાં વર્ણ સંબંધી ૧૦ દસ ભંગ બન્યા છે. અસંગી પ પાંચ અંગે કહ્યા છે. ત્રિક સામાં ૪૦ ચાળીસ અંગે તથા ત્રિક
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩