Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे पन्नत्ते' यथाऽष्टादशशते षष्ठोद्देशके यावन् चतुःस्पर्शः प्रज्ञप्तः, तथाहि-तत्रत्यं प्रकरणम् , 'सिय एगबन्ने सिय दुन्ने सिय तिवन्ने सिय चउक्न्ने सिय पंचवन्ने। सिय एगगधे सिय दुगंधे, सिय एगरसे जाव पंचरसे, सिय दुफासे जाव चउ. फासे' स्यात एकवर्णः स्यात् द्विवर्णः स्यात् त्रिवर्णः स्यात् चतुर्वणः, स्यात् पश्च. वर्णः, स्यात् एकगन्धः स्याद् द्विगन्धः, स्यादेकरसो यावत्पश्चरस: स्यात् द्विस्पशों यावत् चतुः स्पर्श इति । 'जइ एगवन्ने' यदि एकवर्णः पञ्चप्रदेशिकः 'एगवन्न रहवें शतक में छठे उद्देशे में यावत् वह चार स्पर्शीवाला होता है यहां तक जैसा कहा गया है वैसा ही यहां पर कह लेना चाहिये वहां का वह प्रकरण 'सिय एगवन्ने सिय दुवन्ने सिय तिवन्ने सिय चवन्ने सिय पंचवन्ने सिय एगगंधे सिय दुगंधे सिय एगरसे जाव पंचरसे सिय दुफासे जाव च उफासे' इस प्रकार से हैं सो इसी प्रकरण को यहां पर इस प्रकार से खुलासा किया गया है____ 'जह एगवन्ने' यदि वह पंचप्रदेशिक स्कन्ध एक वर्णवाला होता है तो वह इस सामान्य वर्णवत्य के कथन में इस प्रकार से एक वर्णवाला हो सकता है-'सिय कालए य, सिय नीलए य, सिय लोहियए य, सिय हालिहए य, सिय सुकिल्लए य' कदाचित् वह काले वर्णवाला भी हो सकता है ? कदाचित् वह नीलवर्णवाला भी हो सकता है २ कदाचित् वह लालवर्णवाला भी हो सकता है ३ कदाचित् वह पीले वर्णवाला भी हो सकता है ४ अथवा कदाचित् वह शुक्लवर्णवाला भी हो सकता है पन्नत्ते' मारमा शतभi ७४! उदेशाभा यावत् ते या२ २५ वाली छे. એટલે સુધી માં જેવી રીતે કથન કર્યું છે. તે જ પ્રમાણે સઘળું કથન અહિયાં सभा त्यांनुते ५:२४ सिय एगवण्णे सिय दुवन्ने सिय तिवण्णे सिय चउ. वणे सिय पंचवण्णे सिय एग गंवे सिय दुगंधे सिय एग रसे जाव पचरसे सिय दुफासे जाव चउकासे' प्रमाणे घुछ. 24॥ ५४२४ने महियां शत waqanwi मायु छ. 'जइ एगवन्ने' पांय प्रदेशवाजी ४५ मे १ વાળો હોય તે તે આ સામાન્ય વર્ણનના કથનમાં નીચે કહ્યા પ્રમાણેના એક
श छ-'सिय कालए य सिय नीलए य, सिय लोहियए य, सिय हालिदए य सिय सुकिल्लए य' हाय ते ४ा पाणी ५५ શકે છે. ૧ કદાચિત્ તે નીલવર્ણવાળ પણ હોઈ શકે છે ૨ કદાચિત તે લાલ વર્ણવાળો પણ હોઈ શકે છે ૩ કદાચ તે પીળા વર્ણવાળ પણ હોઈ શકે છે. ૪ અથવા કદાચ તે ધેાળા વર્ણવાળ પણ હેઈ શકે છે. આ પ્રમાણે
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩