Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे उगश्व स्निग्धश्चेति तृतीयो भङ्गः ३, कदाचित् उष्णश्च रूक्षइवेति चतुर्थों भङ्गः। एवं सङ्कलनया स्पर्शद्वयवत्वे त्रिपदेशिकस्य मान्धस्य स्पर्शविषये चत्वारो भङ्गा भवन्तीति । 'जइ तिफासे' यदि त्रिपदेशिकः स्कन्धः, त्रिस्पर्श:-स्पर्शत्रयवान् तदा 'सम्वे सीए देसे निद्धे देसे लुक्खे' सर्वः शीतो देशः स्निग्धो देशो रूक्ष इति प्रथमः सर्वांशे शैत्यमे कदेशे स्निग्धताः एकस्मिन रूक्षता इत्यर्थः तयाहि कह लेना चाहिये 'सिए य निद्धे य' यह प्रथम भंग है द्वितीय भंग 'सिय सीए य रुखे य' इस प्रकार से है इस में कदाचित् वह शीत हो सकता है और रुक्ष भी हो सकता है ऐसा कहा गया है तीसरा भंग-सिय उसिणे य निद्धे य' इस प्रकार से है इस में कदाचित् वह उष्ा भी हो सकता है और स्निग्ध भी हो सकता है ऐसा समझापा गया है चतुर्थ भंग-सिय उसिगे य रुक्खे य' ऐसा है इस में कदावित् वह उष्ण हो सकता है और रूक्ष भी हो सकता है ऐसा कहा गया है इस प्रकार शीन और उष्ण को प्रधान करके उनके साथ स्निग्ध और रूक्ष युक्त करके ये ४भा त्रिपदेशिक स्कन्ध के दो स्पों के विषय में बने हैं
अब त्रिस्पर्श विषयक कथन करते हैं-'जह तिफाप्ले' यदि वह त्रिप्रदेशिकरकन्ध तीन सर्शवाला होता है तो वह इस प्रकार से तीन स्पोंवाला हो सकता है 'सधे सीर, देसे निद्धे देसे लुक्खे ?' यह सर्वोश मे शीत हो सकता है, एकदे श में स्निग्ध हो सकता है और दूसरे एक देश म छ, भने 'सिय सीए य रुखे य' प्रमाणे छे.
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हायित् ते शीत-33! छ मे . छे. त्रीले 'सिय उसिणे य निद्धे य' हाय ते ०-१२म
५ श छ भने स्नि५-शिवाणी पण 5 . याथे। म म म छ. -'सिय उसिगे य रुक्खे य' ४ायित् તે ઉપણ હોઈ શકે છે અને ફક્ષ પણ હોઈ શકે છે. તેમ બતાવેલ છે. એ રીતે ઠંડા અને ગરમ ગુણને મુખ્ય બનાવી તે તેની સાથે બ્ધિ અને રૂક્ષને એજી ત્રણ પ્રદેશવાળ સ્કધના બે સ્પર્શ પણાના વિષય માં ૪ ચાર गे। मन छ.
२५ पाना सधनु ४थन २५ प्रमाणे छ, 'जइ तिफासे' ले તે ત્રણ પ્રદેશવાળે અંધ ત્રણ પર્શવાળા હોય છે તો તે આ પ્રકારે ત્રણ २५ मने छ.-'सव्वे सीप, देसे निद्धे, देसे लुक्खे१' ते सर्वा शथी शीत સ્પર્શવાળા હોય છે. એક દેશમાં સ્નિગ્ધ સ્પર્શવાળો હોય છે અને બીજા એક દેશમાં સ્નિગ્ધ રૂક્ષ પશવાળો હોય છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩