Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे इत्यादि, 'जहा अट्ठारसमसए छठ्ठदेसे जाव चउफासे पन्नत्ते' यथाऽष्टादशशते षष्ठोद्देशके यावत् चतुःस्पर्शः प्रज्ञप्ता, अष्टादशशतकस्य षष्ठोदेशके येनैव प्रकारेण वणितं तेनैव प्रकारेण इहापि ज्ञातव्यम् कियत्पर्यन्तं तत्राह-जाव' इति, यावत् चतुःस्पर्शः प्रज्ञप्त एतस्पर्यन्तम् , तथाहि-तिप्पएसिए णं भंते ! खंधे कइबन्ने' इत्यादि, 'गोयमा' सिय एगवन्ने सिय दुवन्ने सिय तिबन्ने, सिय एगगंधे सिय दुगंधे सिय एगरसे सिय दुरसे सिय तिरसे, सिय दुफासे सिय तिफासे सिय चउफासे' त्रिप्रदेशिका खलु भदन्त ! स्कन्धः कतिवर्णः कति गन्धः कति रस: कति स्पर्शः, गौतम ! स्यात् एकवर्णः, स्यात् द्विवर्णः स्यात् त्रिवर्णः, स्यात् एकगन्धः, स्याद् द्विगन्धा, स्यात् एकरसा, स्यात् द्विरसः, स्यात् त्रिरसः, स्यात् प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं 'जहा अट्ठारसमसए छठुइसे जाव चउ फासे पमत्ते' हे गौतम! यावत् वह चार स्पों वाला होता है यहां तक के पाठ द्वारा जैसा कथन १८ वे शतक के छठे उद्देशे में कहा जा चुका है वैसा ही कथन यहां पर भी जानना चाहिये वहां का वह पाठ इस प्रकार से है-'तिप्पएसिए णं भते! खंधे कइवन्ने ?' इत्यादि
उत्तर-'गोयमा! सिय एगवन्ने, सिय दुवन्ने, सिय तिबन्ने, सिय एगगंधे, सिय दुगधे, सिय एगरसे, सिय दुरसे, सिय तिरसे, सिय दुफासे, सिय तिफासे, सिय चउफासे' गौतम ने जब पूर्वोक्त रूप से प्रभु से पूछा कि हे भदन्त ! त्रिप्रदेशिक स्कन्ध कितने वर्णादि गुणों वाला है ? तो इसके उत्तर में प्रभु ने ऐसा कहा है गौतम ! विप्रदेशी स्कन्ध कदाचित् एकवर्ण वाला भी है, कदाचित् दो वर्णों वाला भी है छ ?--जहा अद्वारसमसए छठुदेखे जात्र च उफासे पणत्ते' 3 गौतम ! થાવત્ તે ચાર સ્પર્શેવાળા હોય છે. એટલા સુધીના પાઠ દ્વારા ૧૮ અઢારમા શતકના છઠ્ઠા ઉદેશામાં જે પ્રમાણે કહેવામાં આવ્યું છે, તેજ પ્રમાણેનું કથન मडियां ५५ सम से त्यांना ते ५।3 241 प्रभा छे. 'तिप्पएसिए ण भंते ! खंधे कइवन्ने' त्या
उ० गोयमा ! सिय एगवण्णे सिय दुवण्णे, सिय तिवण्णे, सिय एग गंधे, सिय दुगंधे, सिय एगरसे, सिय दुरसे, सिय तिरसे, सिय दुफासे, सिय तिफासे, सिय चउकासे,' गौतम स्वामी न्यारे पूरित रीत प्रभुने પૂછયું કે હે ભગવદ્ ત્રણ પ્રદેશવાળા સ્કંધ કેટલા વર્ણ વિગેરે ગુણવાળો છે? તે તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે-હે ગૌતમ ત્રણ પ્રદેશવાળે કંધ કદાચિત્ એક વર્ણવાળે પણ હેય છે. કેઈવાર બે વર્ણવાળા પણ હોય
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩