Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्ने अधम्मस्थिकायस्स णं भंते! केवइया अभिवयणा पन्नत्ता ? गोयमा! अणेगा अभिवयणा पन्नत्ता तं जहा-अधम्मेइ वा, अधम्मत्थिकाएइ वा पाणाइवाएइ वा जाव मिच्छादसणसल्लेइ वा इरिया असमिईइ जाव उवारणपासवण जाव परिहावणिया असमिईइ वा मणअगुत्तीइ वा वइअगुत्तीइ वा कायअगुत्तीइ वा जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वे ते अधम्मत्थिकायस्स अभिवयणा । आगासस्थिकायस्स णं पुच्छा गोयमा ! अणेगा अभिवयणा पण्णत्ता तं जहा-आगासेइ वा आगासत्थिकाएइ वा गगणेइ वा नभेइ वा समेइ वा विसमेइ वा खहेइ वा विहेइ वा वीयीवा विवरेइ वा अंबरेइ वा अंबरसेइ वा छिड्डेइ वा झुसिरेइ वा मग्गेइ वा विमुहेइ वा अद्देइ वा विपदेइ वा आधारेइ वा वोमेइ वा भायणेइ वा अंतरिक्खेइ वा सामेइ वा ओवासंतरेइ वा अगमिइ वा फलिहेइ वा अणंतेइ वा जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वे ते अगासस्थिकायस्स अभिवयणा। जीवत्थिकायस्स णं भंते! केवइया अभिवयणा पन्नत्ता? गोयमा! अणेगा अभिवयणा पन्नत्ता तं जहा-जीवेइ वा जीवस्थिकायेइ वा पाणेइ वा भूएइ वा सत्तेइ वा विन्नूइ वा चेयाइ वा जेयाइ वा आयाइ वा रंगणाइ वा हिंडुएइ वा पोग्गलेइ वा माणवेइ वा कत्ताइ वा विकत्ताइ वा जगेइ वा जंतुइ वा जोणीइ वा सयंभूह वा ससरीइ वा नायएइ वा अंतरप्पाइ वा जे यावन्ने तहप्पगारा सवे ते जाव अभिवयणा। पोग्गस्थिकायस्सणं
શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૧૩