Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्र 'विन्नूइ वा६' विज्ञ इति वा चेतनरूपज्ञानवत्वात् ६ । 'चेया७ इति वा चेता इति वा चेताबानावरणीयादि पुद्गलानां चयकारी चेतयिता वा इति चेता७, 'जेयाइति वार' जेता इति वा कर्मरूपशत्रूणां जयकर्ता जेता८, 'अप्पाइ वा९' आत्मा इति आप्नोति-व्याप्नोति ज्ञानविषयतया सर्वमिति आत्मा९ अथवा आप्नोतिपाप्नोति सर्वकर्मफलमिति आत्मा, यद्वा नानागतिसततगामित्वादात्मा११, 'रंगणाइ वा१२' रङ्गण इति वा रङ्गणं-रागस्तादृशसम्बन्धात् रङ्गण इति१२ 'हिंडु. एइ वा१३' हिण्डुक इति वा गमनकर्तृत्वात् हिण्डुक इति१३, 'पोग्गलेइ वा१४' पर्यायवाची सत्व शब्द भी है क्योंकि यह अपनी अस्तित्वरूप संज्ञा से सदा विद्यमान रहता है 'बिन्नइ वा' विज्ञ भी इसका पर्यायवाची शब्द है क्योंकि यह चेतनरूप ज्ञानवाला है 'चेया ७' ज्ञानावरणीय आदि कर्मपुद्गलों का चयकारी होने से इसका पर्यायवाची चेता भी है क्योंकि ज्ञानावरणीय आदि कर्मपुद्गलों का चय जीव ही करता है कर्म रूप शत्रुओं का जयकर्ता होने से इसका नाम जेता भी है अपने ज्ञान के द्वारा यह समस्त ज्ञेयों को व्याप्त कर लेता है इसलिये इसका नाम आत्मा भी है अथवा यह समस्त कर्मों के फलों को प्राप्त करता हैं इसलिये भी इसका नाम आत्मा है अथवा कर्माधीन हुआ यह निरन्तर नाना गतियों में भ्रमण करता रहता है इसलिये भी इसका नाम आत्मा है 'रंगणाइवा १०' राग के जैसे राग से यह सम्बन्धित है इसलिये इसका नाम रङ्गण भी है 'हिंडुएइवा' नानागतियों में यह गमनमत पातानी मस्तित्व ३५ समाथी उमेश विधान २९ छ.५ विन्नूइ * વિજ્ઞ શબ્દ પણ તેને પર્યાયવાચક શબ્દ છે. કેમ કે તે ચેતના રૂપ જ્ઞાનવાળા और 'चेया' ज्ञानाव२९य विगैरे पुराने यय ४२ना२-6400४ पाथी તેનો પર્યાયવાચી “ચેતા” શબ્દ પણ છે છે કેમ કે જ્ઞાનાવરણીયાદિ કર્મ પુદ્ગલેને ચય જીવ જ કરે છે. તેમ જ કર્મ પુત્રને જીતનાર હોવાથી “જેતા” એવું પણ નામ છે.૮ પિતાના જ્ઞાનથી તે સઘળા ય–જાણવા લાયક પદાર્થોને યાપ્ત કરે છે. તેથી તેનું નામ “આત્મા’ એ પ્રમાણે પણ છે અથવા તે સઘળા કર્મોના ફલેને પામે છે, તેથી પણ તેનું નામ આત્મા છે. અથવા
આધીન થયેલ તે નિરંતર અનેક ગતિમાં ભમ્યા કરે છે. તેથી તેનું नाम मा छ, 'रंगणाइ वा' रागनीम ते रोगथी ते सगथी समय. पाणी २७ छ, तथा तेनु नाम '२' मे ५ छ. 'हिंदुएइ वा' त
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩