Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०९ सू०१ करणस्वरूपनिरूपणम् ४६३ भदन्त ! 'कइविहे पन्नत्ते' कतिविधं प्रज्ञतम् वर्णकरणस्य कियन्तो भेदाः ? इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोषमा' हे गौतम ! 'पंचविहे पन्नत्ते' पञ्चविधं प्रज्ञप्तम्-कथितम् 'तं जहा' तद्यथा 'कालगन्नकरणे' कृष्णवर्णकरणम् 'जाव सुकिल्लबन्नकरणे' यावत् शुक्लवर्णकरणम् अत्र यावत्पदेन नीलरक्तपीत. वर्णानां संग्रहः, तथा च वर्णानां पञ्चविधत्वात् वर्णकरणमपि पश्चविधं भवतीत्युत्तरम् । 'एवं भेदो' एवं भेदः, एवम्-कृष्णादिरूपेण भेदो वर्णानां कथितस्तथा गन्धादिष्वपि वक्तव्य इति, तथा च 'गंधकरणे दुविहे' गन्धकरणं द्विविधं सुरभिगन्धकरणदुरभिगन्धकरणभेदात् 'रसकरणे पंचविहे' रसकरणं पञ्चविधम् तिक्तकटु कषायाम्लमधुरभेदेन रसस्य पञ्चविधत्वात् तत्करणमपि पश्चविधमेव भवपण्णत्ते' हे भदन्त ! वर्णकरण कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभुने कहा है-'गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते' हे गौतम ! वर्णकरण पांच प्रकार का कहा गया है जो इस प्रकार से है-'कालबन्नकरणे जाव सुकिल्लवन्नकरणे' कृष्णवर्णकरण यावत् शुक्लवर्णकरण यहां यावत्पद से नील, रक्त और पीतवर्णों का ग्रहण हुआ है इस प्रकार वर्गों की पंचविधता से इनके करणों में भी पंचप्रकारता कही गई है । 'एवं भेदो' इस प्रकार से यह कृष्णादिरूप से वर्गों का भेद जैसा कहा गया है वैसा ही गन्धादिकों में भी कह लेना चाहिये तथा च-गंधकरणे दुविहे' गंधकरण सुरभिगंधकरण और दुरभिगन्धकरण के भेद से दो प्रकार का होता है 'रसकरणे पंचविहे पण्णत्ते' रस-तिक्त, कटु, कषाय, अम्ल और मधुर के भेद से पांच प्रकार का होता है इसलिये रमकरण छ ? 40 प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ -'गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते' के गौतम १४२९३ पांय ५४.२नु छ. २ मा प्रमाणे छे. 'कालवण्णकरणे जाव सुकिल्लवण्णकरणे' वय ४२५१ शुस १४ ४२६] मड़ियां થાવત્ પદથી નિલ રક્ત અને પીળા વણે ગ્રહણ કરાયા છે. એ રીતે વર્ણોના पांय ४२५ थी ! ना ४२ मा urg पाय २५ हे छे. 'एवं भेदो' माशते मा १०५ नीर विगेरे २२ पाना हो या छ. तर प्रमाणे विगेरेभा ५९ लेहो सम०४५१. ते४ ४९ छे. 'गंधकरणे दुविहे' સુરભિ ગંધ કરણ સુંગધ અને દુરભિ ગંધ કરણના ભેદથી ગંધ કરણ બે ४२ना होय छे. 'रसकरणे पचविहे पण्णत्ते' तित-तीजे ४४-४३। उपाय તુરો અ૩-ખાટ અને મધુર-મીઠે એ ભેદથી રસે પાંચ પ્રકારના હોય છે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩