Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
भगवानाह - ' णो णट्ठे' इत्यादि, 'णो इण समट्टे' नायमर्थः समर्थः इष्टानिष्टरसस्पर्शविषयक पतिसंवेदनं तेषां न भवतीत्यर्थः । 'पडिसंवेदेति पूण ते' प्रतिसंवेदयन्ति पुनस्ते प्रतिसंवेदनविषयक ज्ञानाद्यभावेऽपि प्रतिसंवेदनं रसादिविषयकं तु रसादिविषयकोऽनुभवस्तु भवत्येवेति भावः । 'ठिई जहन्नेणं अंतोमुहुत्त' स्थितिर्जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् 'उकोसेणं वारससंचच्छराई' उत्कर्षेण द्वादशसंवत्स राणि 'सेसं तं चेव' शेषं तदेव एकोनविंशतिशत की य तृती योद्देश कस्थ तेजस्काकिमकरणकथितवदेव समुद्घातादिकं सर्वं तत्समानमेव द्रष्टव्यम् । 'एवं तेइंदियाणं प' एवं त्रीन्द्रियाणामपि द्वीन्द्रियवत् त्रीन्द्रियजीवानामपि सर्वम् अबगन्तव्यम् एवं चउरिदियाण वि' एवं चतुरिन्द्रियाणामपि जीवानाम् द्वीन्द्रियमउत्तर में प्रभु कहते हैं- 'णो इणट्ठे समट्टे' हे गौतम! इष्टानिष्ट रसों और स्पर्शो को विषय करनेवाला प्रतिसंवेदन उनको नहीं होता है इस प्रकार उनके प्रति संवेदन विषयक ज्ञानादिका अभाव है फिर भी 'पडिस वेदेति' रसादि विषयक अनुभव तो उनको होना ही है 'ठिई जहन्नेण अंतोमुहुतं' उनकी स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की होती है और 'Freej बारससंबच्छराई' उत्कृष्ट से १२ वर्ष की होती है । 'सेसं तं चेव' बाकी का और सब समुद्घात आदि का कथन १९ वें शतक के तृतीय उद्देशक में जिस प्रकार से तेजस्कायिक जीवों का कथन किया गया है वैसा ही है 'एवं तेइंदियाण वि' द्वीन्द्रिय जीवों के विषय में जैसा कथन किया गया है, इसी प्रकार का कथन तेइन्द्रिय जीवों के विषय में भी जानना चाहिये 'एवं चउरिदियाण वि' द्वीन्द्रिय
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अश्नना उत्तरमां अलु उडेछे है- 'णो इणटूट्ठे समट्ठे' हे गौतम! पुष्ट અનિષ્ટ રસાને તથા સ્પર્ધાંને વિષય કરવાવાળુ પ્રતિસ`વેદન તેઓમાં હતુ નથી. એ રીતે તેએાના પ્રતિસવેદન સંબંધી જ્ઞાનાનિા તેમાં અભાવ છે. तो पशु 'पडिसवेदेति' रसाहिनी अनुलवतो तेयाने थाय छे ४ 'ठिई जहणेणं अंतोमुहुत्तं ' तेमोनी स्थिति न्धन्यथी थे अतभुतनी होय छे. मने 'उक्कोसेणं बारससंवच्छराई' उत्सृष्टथी १२ मा२ वर्षांनी होय छे. 'सेसं सं येव' माडी समुधात विगेरे सघणु उथन १८ मोगली सभा शतङना ત્રીજા ઉદ્દેશામાં જે પ્રમાણે તેજસ્કાયિક જીવાતું કથન કરેલ છે तेल अभावे छे. 'एवं तेइंदियाण वि' ઢીન્દ્રિય જીવેાના સબંધમાં પ્રમાણેનુ' કથન કરેલ છે. એજ પ્રમાણેનુ કથન ત્રણ ઇંદ્રિયવાળા જીવાને विषयभां पप्य समभवु 'एवं चउरिदियाण वि' मे छद्रियवाजा लवोना
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
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