Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०८ सू०१ जीवनिवृत्तिनिरूपणम् ४३७ 'एगा हुंडसंठाणनित्यत्ती पन्नत्ता' एका हुण्डसंस्थाननिवृत्तिः प्रज्ञप्ता नारकजीवानां हुण्डसंस्थानं भवतीत्युत्तरम् 'अमुरकुमाराणं पुच्छा' असुरकुमाराणां पृच्छा हे भदन्त ! असुरकुमाराणां कीदृशी संस्थाननिर्वृत्तिर्भवती ? ति प्रश्नः, भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'एगा समचउरंससंठाणनिव्वत्ती पन्नत्ता' एका समचतुरस्रसंस्थाननिर्वृत्तिः प्रज्ञप्ता, असुरकुमाराणां कीदृशी संस्थाननिर्वृत्ति रिति प्रश्नः, एका समचतुरस्रसंस्थाननिर्वृत्तिरित्युत्तरम् , 'एवं जाव थणियकुमा. राणं' एवं यावत् स्तनितकुमाराणाम् यथा असुरकुमाराणाम् एकं समचतुरस्त्र. संस्थानम् तथैव यावत् स्तनितकुमाराणामपि एकमेव समचतुरस्त्र संस्थानमिति । 'पुढवीकाइयाणं पुच्छा' पृथिवीकायिकानां पृच्छा हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीवानां कीदृशी संस्थाननिर्वृत्तिर्भवतीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'एगाममूरचंदसंठाण निव्यत्ती पन्नत्ता' एका ममूरचन्द्रसंस्थान उत्तर में प्रभुकहते हैं-'गोयमा !' हे गौतम ! 'एगा हुंडसंठाणनिव्वत्ती पण्णत्ता' नारक जीवों को एक हुंडकसंस्थान नित्ति होती है 'असुरकुमारणं पुच्छ।' हे भदन्त ! असुरकुमारों के कैसी संस्थाननिर्वृत्ति होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा! एगा समचउरंससंठाणनिध्यत्ती पन्नत्ता' हे गौतम! असुरकुमारों को एक समचतुरस्र संस्थाननिवृत्ति होती है 'एवं जाव थणियकुमाराण' इसी प्रकार से यावत् स्तनितकुमारों के भी एक समचतुस्रसंस्थान की निवृत्ति होती है 'पुढवीकाइ. याणं पुच्छ।' हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीवों को कैसी संस्थाननिर्वृत्ति होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-गोयमा! एगा मसूरचंदसंठाण. निव्वत्ती' हे गौतम ! पृथिवीकायिक जीवों को संस्थान की निति जैसे निवृत्ति य छ १ तेना उत्तम प्रभु ४ छ -'गोयमा ! गौतम ! 'एगा हुंडसठाणनिबत्ती पण्णता' ना२४ वोने से हुई सस्थान निति डाय छे. 'असुकुमाराणं पुच्छा' लगवन् असुमाराने उनी सथान निवृत्तिय छ? 20 प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ -'गोयमा! एगा समचउरंससंठाणनिव्वत्ती पण्णत्ता' 3 गीतम! मसु२४माशने में समयतु संस्थान नितिडीय छ. 'एवं जाव थणियकुम राणं' मे प्रमाणे यावत् स्तनितभार सुधिमा ५५ मा मे सभयत सथाननी निवृत्ति डाय छे. 'पुढवीकाइयाणं पुच्छा' 3 ભગવન પૃથ્વીકાયિક જીવને કેવી સંસ્થાન નિવૃત્તિ હોય છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ ४ छ -'गोयमा एगा मसूरचंदसंठाणनिव्वत्ती' 3 गीतम! यि મસૂરની દાળના આકારની અથવા ચંદ્રમાના આકાર જેવી ગાળ સંસ્થાન નિવૃત્તિ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૩