Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्त्रे विधम् , तच्च नारकादारभ्य वैमानिकान्त जीवानां यथाविभागं वक्तव्यं ज्ञातव्यं चेति । 'दिट्ठीकरणे तिविहे' दृष्टिकरणं त्रिविधम्-सम्यग्दृष्टि-मिथ्यादृष्टि-सम्यगुमिथ्यादृष्टिभेदेन दृष्टेस्त्रिविधत्वात् दृष्टिकरणमपि त्रिविधं भवति-इदं चापि दृष्टिकरणं नारकादारभ्य वैमानिकान्तजीवानां यथाविभागं वक्तव्यं ज्ञातव्यं चेति । 'वेयकरणे तिविहे पन्नत्ते' वेदकरणं त्रिविधं मशहम् 'तं जहा तयथा 'इत्थीवेयकरणे' स्त्रीवेदकरणम् ‘पुरिसवेयकरणे' पुरुषवेदकरणम् ‘णपुंसगवेयकरणे' नपुंसकवेदकरणम् एतादृशं त्रिविधमपि वेदकरणं नारकादारभ्य यावद्वैमानिकान्तजीवानाम् यथाविभागै वक्तव्यं ज्ञातव्यं चेति । 'एए सब्वे नेरइयाई दंडगा जाव वेमाणियाणं जस्स जं अस्थि तस्स तं सव्वं भाणियब्ध' एते सर्वे नैरयिकादिदण्डकाः यावका होता है यह लेश्याकरण भी जहां जितनी लेश्याएं होती हैं उसके अनुसार नारक से लेकर वैमानिकान्त जीवों को होता है 'दिट्ठीकरणे तिविहे' दृष्टिकरण भी सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि के भेद से ३ प्रकार कहा गया है यह दृष्टिकरण भी नारक से लेकर वैमानिकान्त जीवों में यथा विभाग होता है 'वेयकरणे तिविहे पण्णत्ते' वेद करण भी स्त्रीवेदकरण, पुरुषवेदकरण और नपुंसकवेदकरण के भेद से ३ प्रकार का कहा गया है यह वेदकरण भी नारक से लेकर वैमानिकान्त जीवों के यथाविभाग होता है । एकेन्द्रिय से लेकर असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तक जीव नपुंसकवेवाले ही होते हैं देवों में स्त्रीवेद और पुरुषवेद ही होता है नारकों में एक नपुंसकवेद ही होता है और शेष जीवों में तीनों प्रकार के वेद होते हैं इस प्रकार के विभाग अनुसार यह वेदकरणसमस्त संसारी जीवों को होता है । 'एए सव्वे नेरइयाह दंडगा जाव वेमाणिसार नारथी बेन वैमानि सुधीन। न जाय छे. 'दिट्रिकरणे तिविहे पण्णत्ते' दृष्टि४२५५ ५५४ सभ्यष्टि, मिथ्याटि अन मटन थी ત્રણ પ્રકારનું કહેલ છે આ દૃષ્ટિકરણ પણ નરકથી લઈને વૈમાનિક સુધીના
वाम भथी थाय छे. 'वेयकरणे तिविहे पण्णत्ते' व ४२५५ ५६ सी वह કરણ પુરુષ વેદ કરણ અને નપુંસક વેદકરણના ભેદથી ત્રણ પ્રકારનું કહેલ છે. આ વેદ કરવું પણ નારકથી આરંભીને વૈમાનિક સુધીના જીવોમાં તેઓના વિભાગ પ્રમાણે હોય છે. એકેન્દ્રિયથી આરંભીને અસંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય જીવ સુધીના જીવે નપુંસક વેદવાળા જ હોય છે. દેવેમાં સ્ત્રી વેદ અને પુરુષ વેદ જ હોય છે, અને બાકીના જીવમાં ત્રણ પ્રકારના વેદ હોય છે. આ રીતના वास प्रमाण मा १ ससारीवान जय छे. 'एए सब्वे नेरइयाइ दंडगा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩