Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०८ सू०१ जीवनिवृत्तिनिरूपणम्
हे गौतम! 'दुविहा पन्नत्ता' द्विविधा प्रज्ञप्ता 'तं जहा ' तद्यथा 'सुहमपुढचीकाइयएर्गिदियजीवनिव्यत्ती ' सूक्ष्मपृथिवीकायिकै केन्द्रियजीवनिवृत्तिश्व 'बायरपुढवीकाइयए गिंदियजीव निव्वती य' बादरपृथिवीकायिकै केन्द्रियजीवनिवृत्तिश्च तथाचसूक्ष्मवादरभेदेन पृथ्विका थिकै केन्द्रियजीव निवृत्तिर्द्विधा भवतीति, एवं एए अभिलावेण भेदो' एवमेतेन अभिलापेन भेदो वक्तव्यः 'जहा वहगबंधो derarea' यथा कबन्धस्तैजसशरीरस्य यथा महलबन्धाधिकारे अष्टमश ते नवोद्देशकाभिहिते तैजसशरीरस्य बन्धः कथितस्तेनैव प्रकारेण अत्र निर्वृतिर्वक्तव्या
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कहते हैं- 'गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता' हे गौतम! पृथिवीकाधिक एकेन्द्रियजीवनिवृत्ति दो प्रकार की कही गई 'सुमपुढवीकाइयएर्गिदियजीवनिव्वली बारपुढवी ० ' एक सूक्ष्म पृथिवीकाधिक एकेन्द्रियजीवनिवृत्ति और दूसरी बादर पृथिवीकाधिक एकेन्द्रियजीवनिवृत्ति तथा च सूक्ष्म और बादर के भेद से पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय जीव निर्वृत्ति दो प्रकार की होती है'एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहां बहुगबंधो तेयगसरीरस्स' जिस प्रकार से अष्टमशतक के नौंवे उद्देशे में अभिहित महद्बन्ध के अधिकार में तेजसशरीर का बन्ध कहा गया है उसी प्रकार से इस पाठ द्वारा निर्वृत्ति का कथन कर लेना चाहिये तात्पर्य कहने का यह है कि इस विषय को जानने के लिये अष्टम शतक का नौवां उद्देशक देखना चाहिये कहां तक वह उद्देश देखना चाहिये तो इसके लिये 'जाव सव्वट्टसिद्ध अणु
छे - 'गोयमा ! दुबिहा पण्णत्ता' हे गौतम! पृथ्वी।यि मेन्द्रिय भवनिवृत्ति थे प्रकारनी उही छे. 'तंज' ते या प्रमाये छे. 'सुहुमपुढवीका इयएगि दिय जीवनि० बायरपुढवी०' 5 सूक्ष्म पृथ्वी अयि थेोहैन्द्रिय भवनिवृत्ति भने બીજી ખાદર પૃથ્વીકાચિક એકેન્દ્રિય જીવ નિવૃત્તિ એ રીતે સૂક્ષ્મ અને બાદરના ले४थी पृथ्वी डायिक गोर्डेन्द्रिय लव निर्वृत्ति मे अारनी ही छे, ' एवं एएणं अभिलावेण भेदो जहा बङ्गबंधो तेयगसरीरस्स' के रीते आया शतकुना नवभा ઉદ્દેશામાં મહદ્અંધના અધિકારમાં તેજસ શરીરને ખધ કહેલ છે. એજ રીતે
આ પાઠથી નિવૃ*તિનું કથન કરી લેવુ. કહેવાનુ તાપ એ છે કે—આ વિષયને સમજવા માટે આઠમા શતકના નવમા ઉદ્દેશે જોવા જોઇએ. એ નવમા ઉદ્દેશાનું स्थन यां सुधीनु सहियां लेवु लेहये. ते भाटे हे छे है- 'जाव सव्बट्ट -
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩