Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ ३०३ सू०१ लेश्यावान् पृथ्वीका यिका दिजीवनि० ३१९ सूत्रस्य व्युत्क्रान्तिनामकं पष्ठं पदम् तथाचैत्रम् तेजस्कायिकजीवानामुपपातस्तिगतिभ्यो मनुष्यगतिभ्यो न तु एतद्भिन्नोऽयमित्याशयः । स्थितिस्तु तेजस्का यिकानां जघन्यतोऽन्तमुहूर्त्त पूर्ववदेव उत्कृष्टवस्तु अहोरात्रत्रयमात्रम् तेजस्कायिकजीवास्तेजस्कायिकेभ्य उद्वृत्तास्तु तिर्यग्गतावेव उत्पद्यन्ते यथैवोत्पादादौ विशेषोऽस्ति तथा लेश्यायामपि यतः पृथिवीकायिकानां चतस्रो लेश्या भवन्ति तेजस्कायिकानां तु तिस्रोतलेश्या भवन्ति 'सेसं तं वेत्र' शेष ं तदेव शेष' यस बैलक्षण्यादिकं कथितं तद्भिन्नं सर्वमपि तदेव पूर्ववदेव समुद्घातादिकं सर्व पूर्ववदेव बोद्धsafar द्वारों को लेकर यह तेजस्कायिक प्रकरण में अन्तर है यह अन्तर प्रज्ञापना सूत्र के व्युत्क्रान्ति नामके छडे पद में इस प्रकार से प्रकट किया गया है तैजस्कायिक जीवों का उत्पात तिर्यश्चगति से और मनुष्यगति से ही यहां कहे गये हैं परन्तु उत्पाद स्थिति और उद्वर्तमा द्वारों को लेकर यहां तैजस्कायिक प्रकरण में अन्तर है यह अन्तर प्रज्ञापना सूत्र के व्युत्क्रान्ति नामके उट्टे पद में इस प्रकार से प्रकट किया गया है तेजस्कायिक जीवों का उत्पान तिर्यञ्चगति से और मनुष्यगति से होता है अन्य गति से नहीं । तैजस्कायिकों की स्थिति जघन्य से अंत मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से तीन अहोरात्र की है तेजस्कायिक जीव तैजस्कायिकों की पर्याय से मरण करके तिर्यञ्चगति में ही उत्पन्न होते हैं । जैसा उत्पाद आदिकों को लेकर यह पूर्व कथन की अपेक्षा यहां अन्तर प्रदर्शित किया गया है उसी प्रकार से लेश्या को लेकर भी इस कथन में विशेषता है क्योंकि पृथिवी कायिक जीवों में चार लेश्याएं होनी हैं और तेजस्काधिक जीवों में तीन लेश्याएं होती हैं। 'सेसं तं चैव तेजस्कायिकों में जिन बातों को लेकर पृथिवीकायिक की अपेक्षा પરંતુ ઉત્પાત, સ્થિતિ અને ઉદ્ઘના દ્વારેમાં આ તેજસ્કાયિકામાં અન્તર છે, અનન્તર પ્રજ્ઞાપનાસૂત્રના વ્યુત્ક્રાન્તિ નામના છટ્ઠા પટ્ટમાં આ પ્રમાણે બતાવેલ છે તેજકાયિક જીવેાનેા ઉત્પાત તિય ચ ગતિથી અને મનુષ્યગતિથી થાય છે. શ્રીજી ગતિથી થતા નથી. તેજસ્કાયિકાની સ્થિતિ જધન્યથી અન્તર્મુહૂતની છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ અહેરાત્રની હેાય છે. વૈજાયિકની પર્યાયથી મરીને તિયન્ચ ગતિમાં જ ઉત્પન્ન થાય છે. ઉત્પાત વિગેરેની ખાખતમાં પૂ કથનની અપેક્ષાથી જેવી રીતે અન્તર બતાવેલ છે. તે જ રીતે લેશ્યાના સમધમાં આ કથનમાં વિશેષપણુ` છે. કેમ કે પૃથ્વિકાયિક જીવેશમાં ચાર લેશ્યાએ થાય છે. 'सेसं तं चेत्र' तै४स्ायामां में मामतेोथी पृथ्वियि भवानी अपेक्षाये
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩