Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेrचन्द्रिका टीका २०१८ उ०९ सू० १ भव्यद्रव्यनारकादिनां निरूपणम् २०७ नितकुमारस्य एवं यथा भव्यद्रव्यासुरकुमारस्य जघन्येन अन्तर्मुहूर्त मुस्कृष्टतः पल्पो पमत्रयमायुः कथितं तथैत्र स्तनितकुमारपर्यन्तं जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तम् उत्कृष्टतः पल्योपमत्रयमायुर्निरूपितमिति उत्तरकुर्वादियुगळिकानां मरणानन्तरं देवेवृत्पद्यमानत्वात् 'भवियदब्वपुढवीकाइस्स गं' भव्यद्रव्यपृथिवीकायिकस्य खल्ल 'पुच्छा' पृच्छा उक्तरूपेण भव्यद्रव्यपृथिवीकायिकस्य स्थितिविषये प्रश्नः, भगवानाह - 'गोमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'जहन्नेणं अंतोमुहतं जघन्येन अन्तमुहूर्त भव्यद्रव्यपृथिवीकापिकस्य स्थितिः प्रज्ञप्ता 'उक्को सेणं सातिरेगाईं दो सागरोवमाई' उत्कर्षेण सातिरेकाणि द्विसागरोपमाणि भव्यद्रव्यपृथिवीकायिकस्य स्थितिः ईशान देवमाश्रित्य किञ्चिदधिकसागरोपमद्वयात्मिका कथिता, 'एवं
प्रकार से भव्यद्रव्य असुरकुमार की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त की और तीन पल्योपम की कही गई है, उसी प्रकार से स्तनितकुमार तक के भव्यद्रव्यभवनपतियों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की तथा तीन पल्योपम की कह लेनी चाहिये। क्योंकि उत्तर कुरु आदि के युगलिकों का उत्पाद देवों में ही होता है । 'भवियदव्यपुढवीकाइयस्स णं पुच्छा' हे भदन्त जो जीव भव्यद्रव्यपृथिवीकाधिक होता है, उसकी स्थिति कितने काल की होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहृतं उक्कोसेणं सातिरेगाई दो सागरोवमा' हे गौतम! भव्यद्रव्यपृथिवीकायिक की स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त की होती है और उत्कृष्ट से दो सागरोपम से कुछ अधिक होती है । यह स्थिति उत्कृष्ट जो इतनी कही गई है वह ईशानदेव को
અસુરકુમારોની સ્થિતિ જઘન્યથી અંતર્મુહૂતની અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પલ્યેાપમની કહી છે, તેજ રીતે સ્તનિતકુમાર સુધીના ભવ્યદ્રવ્યભવનપતિયાની જધન્ય સ્થિતિ અન્તર્મુહૂતની અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ત્રણ પત્યેાપમની સમજી લેવી કેમ કે ઉત્તર કુરુ વિગેરેના યુગલિકાના ઉત્પાત દેવામાં જ હોય छे. “भवियदव्व पुढवीकाइयस्स णं पुच्छा" हे भगवन् भव्य द्रव्य पृथ्वी अयिष्ठ જે જીવ હાય છે, તેની સ્થિતિ કેટલા કાળની હાય છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ उ छे है - "गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं माई" हे गौतम! सव्यद्रव्य पृथ्वी अयिनी स्थिति હાય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી એ સાગરાપમથી કંઇક વધારે થાય છે. આ ઉત્કૃષ્ટ स्थिति ? उही छे ते शानदेवने उद्देशाने उसी छे, “एवं आउक्काइयस्व वि”
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
सातिरेकाई दो सागरोंधन्यथी अतर्मुहूर्तना