Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका २०१८ उ०१० सू० ४ द्रव्यधर्मविशेषादिनिरूपणम्
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सोमिला ' तत् नूनं निश्चितं सोमिल ! 'बंभण्णएस नएस' ब्राह्मण्येषु नयेषु ब्राह्मणविषयेषु शास्त्रेषु, अथवा बृंहयति-शरीरादीन् परिणमयति इति ब्रह्म जीवात्मा, जीवसंबन्धादेव जडवदार्थानां परिणामसंभवात्, ब्रह्मग उपासका ब्राह्मणाः तेषां शास्त्रे जीवाजीवादि सूक्ष्मस्थूलविषयप्रतिपादकसर्वज्ञशासने इत्यर्थः संप ते । 'दुविहा सरिसवया पत्नत्ता' द्विविधाः द्विमकारकाः सरिसवयाः प्रज्ञप्ताः कथिताः 'तं जहा मिचसरिसवया धन्नसरिसवया' तपथा मित्रसरिसवयाच धान्य सरिसवयाश्च सरिसवयपदस्य सदृशवयस्का इत्यर्थे मित्रपरत्वं, सर्षपका में प्रतिपादन करने के अभिप्राय से सोमिल से कहते हैं-' से पूर्ण सोमिला ! भण्णएसु०' हे सोमिल ! ब्राह्मणविषयशास्त्रों में अथवा सर्वज्ञशासन में दो प्रकार के 'सरिसव' कहे गये हैं यहां 'बंभण्णएसु नएस' पद का जो दूसरा अर्थ सर्वज्ञशासन ऐसा किया गया है वह इस अभिमान को लेकर किया गया है - ब्रह्म शब्द का अर्थ जीवात्मा है क्योंकि 'वृहत शरीरादीन् परिणमयति' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो शरीरादिकों को परिणमाता है वह ब्रह्म है, ऐसा वह ब्रह्म जीवात्मारूप ही है क्योंकि जड पदार्थों में जो परिणमन होता है वह जीव के सम्बन्ध से ही होता है। ऐसे इस ब्रह्म के जो उपासक हैं वे ब्राह्मण हैं इन ब्राह्मणों के शास्त्र में जीव, अजीव, सूक्ष्म स्थूल आदि विषयों के प्रतिपादक सर्वज्ञशासन में 'सरिसव' दो प्रकार के कहे गये हैं ऐसा जानना चाहिये दो प्रकार के सरिसव मित्र सरिसव और धान्य-अनाज सरिसव के भेद से हैं । 'सहरावयस्क' इस अर्थ में सरिसववय पद मित्र कुरवाना अभिप्रायथी से मिलने छे --' से णून' सोमिला ! बंभण्णएसु०' હું સેામિલ ! બ્રાહ્મણુ વિષયના શોમાં અથવા સર્વજ્ઞ શાસનમાં એ પ્રકારના 'सरिसव' 'डेवामां भाव्या छे. मडियां 'बंभण्णएसु नरसु' मे पहने जीने અથ સર્વજ્ઞશાસન એવા કરેલ છે, તે એ અભિપ્રાયથી કરવામાં આવ્યે ---ब्राह्मण शहना अर्थ आत्मा से मछे 'बृहयति शरीरा दीन् परिणमयति' मे व्युत्पत्ति प्रमाणे शरीराद्विने ने परिशुभावे छे, ते બ્રહ્મ છે. એવુ તે બ્રહ્મ જીવાત્મા રૂપ પરિણમન થાય છે, તે જીત્રના સંબધથી જ થાય છે. એવા તે બ્રહ્મને જે ઉપાસક છે, તે બ્રાહ્મણ છે. એ બ્રાહ્મણેાના શાસ્ત્રમાં જીવ, અજીવ, સૂક્ષ્મ, સ્થૂલ, વગેરે વિષયાને પ્રતિપાદન કરનાર સજ્ઞ શાસનમાં ‘રિસવ' એ પ્રકારના કહેવામાં આવ્યા છે, તેમ સમજવું, તે બે પ્રકાર મિત્ર સરિસવ અને ધાન્ય સરિસત્ર એ રીતના ભેદથી છે. ‘સદૃશવયસ્ક એ અથ માં સરસવ यह भित्रने वाया होय छे भने 'सर्ष
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩