Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ममेयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०१ सू०१ लेश्यास्वरूपनिरूपणम् २७९ ___टीका-"रायगिहे जाव एवं वयासी" राजगृहे यावत् गौतम एवमवादीत् अत्र यावत्पदेन गुणशिलकं चैत्यम् भगवान् समवमृतः परिषत् समागता धर्मकथानन्तरं परिपन प्रतिगता, तदनु पाञ्जलिपुटो गौतमः, एतदन्तस्य प्रकरणस्य संग्रहो भवति किमुक्तवान् गौतमः तत्राह-'कइ णे' इत्यादि । 'कइ " भंते ! लेस्साओ पन्नत्ताओ' कति खलु भदन्त ! लेश्याः प्रज्ञप्ता इति प्रश्नः, भगवानाह'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'छ लेस्साभो पन्नताओ' षट्लेश्याः प्रज्ञप्ताः, कृष्णादिद्रव्यसंबन्धात आत्मनः परिणामविशेषो लेश्या यावत्पर्यन्तं योगा
'रायगिहे जाव एवं वयासी' इत्यादि ।
टीकार्थ--'रायगिहे जाव एवं वयासी' राजगृहनगर में यावत् गौतम ने इस प्रकार से पूछा यहां यावत्पद से इस प्रकरण का संग्रह हुआ है कि उस राजगृह नगर में गुगशिलक उद्यान था। उसमें भगवान् का आगमन हुआ परिषदा वहां पहुंची प्रभु ने धमकथा कही पश्चात् परिषत् वापिस चली गई, तब गौतम ने दोनों हाथ जोडकर प्रभु से ऐसा पूछा ऐसा सम्बन्ध यहां यावत्पद से लगाया गया है प्रभु से पूछा-'कह णं भंते ! लेस्साओ पन्नत्ताओं' तो इसे बताने के लिये यह सूत्र कहा गया है, हे भदन्त ! लेश्याएँ कितनी होती हैं ऐसा गौतम ने प्रभु से पूछा है। उत्तर में प्रभु ने कहो-'गोयमा! छ ल्लेस्साओ पन्नत्ताओ' हे गौतम ! लेश्याएँ छ होती हैं कृष्णादिद्रव्य के सम्बन्ध से जो आत्मा का परिणाम विशेष होता है उसका नाम लेश्या है, यह लेश्या जब तक योग रहते हैं
'रायगिहे जाव एवं वयासी'
टी -रायगिहे जाव एवं वयासी' २२ नगरमां यावत् गौतम સ્વામીએ પ્રભુને આ પ્રમાણે પૂછ્યું. અહિયાં યાવત્ પદથી નીચે પ્રમાણે પાઠનો સંગ્રહ થયો છે. રાજગુડ નગરમાં ગુણશિલક નામના ઉદ્યાનમાં ભગવાન મહાવીર સ્વામી પધાર્યા. પ્રભુનું આગમન સાંભળીને પરિષદા પ્રભુને વંદના કરવા આવી પ્રભુએ તેઓને ધર્મદેશના આપી. તેઓ ધર્મદેશના સાંભળીને પ્રભુને વંદના નમરકાર કરીને પરિષદા તિપિતના સ્થાને પાછી ગઈ છે પછી પ્રભુની પર્યું પાસના કરતા એવા ગૌતમ સ્વામીએ બને હાથ बीन प्रमुन म प्रमाणे पूछयु.-कइणं भंते ! लेस्साओ पण्णत्ताओ' 3 सावन લેશ્યાઓ કેટલા પ્રકારની કહેવામાં આવી છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુએ मा प्रमाणे घु-'गोयमा! छ लेस्साओ पण्णताओ' हे गौतम ! सेश्या। થાય છે. કૃષ્ણાદિ દ્રવ્યના સંબંધથી આત્મામાં જે કર્મનું પરિણમન થાય છે,
શ્રી ભગવતી સત્ર: ૧૩