Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे भदन्त ! मनुष्यः 'अणंतपएसियं खंधं किं पुच्छा' अनन्तमदेशिकं स्कन्धं किं पृच्छा हे भदन्त छद्मस्थो मनुष्यः अनन्तप्रदेशिकं स्कन्धं कि जानाति पश्यति अथवा न जानाति न पश्यतीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'अत्थेगइए जाणइ पासइ' अस्त्येकको जानाति पश्यति च १, अत्थेगइए जाणइ न पासई' अस्त्येककोऽनन्तपदेशिकं स्क, जानाति न पश्यति २, 'अत्थेगइए न जाणइ पासई' अस्त्येकको न जानाति किन्तु पश्यति ३, अत्थेगइए न जाणइ न पासइ' अस्त्येकको न जानाति न पश्यति ४ इति चत्वारो भङ्गा भगवता प्रदर्शिताः तथाहिनहीं है। तथा कोई एक उसे न जानता है, और न देखता है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'छ उमत्थे णं भंते ! मणूसे' हे भदन्त ! जो मनुष्य छद्मस्थ है वह 'अणंतपएसियं खधं कि पुच्छ।' क्या अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध को क्या जानता और देखता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा इत्यादि' हे गौतम! कोई ऐसा छद्मस्थ मनुष्य होता है जो उस अनन्तप्रदेशी स्कन्ध को जानता भी है और देखता भी है १, 'अत्थेगइए जाणइ न पास' तथा कोई ऐसा छमस्थ मनुष्य होता है जो उस अनन्तप्रदेशी स्कन्ध को जानता तो है पर देखता नहीं है २ 'अस्थेगहए न जाणइ, पासइ' तथा कोई एक ऐसा छमस्थ होता है जो अनन्तप्रदेशी स्कन्ध को जानता नहीं है किन्तु देखता है ३ -'अस्थेगहए न जाणइ न पासइ' तथा कोई एक छमस्थ मनुष्य ऐसा નથી. તથા કોઈ એક તેને જાણતા નથી અને દેખતા પણ નથી. ફરીથી ગૌતમ स्वामी प्रसुन पूछे छे ?-"छउमत्थे णं भंते मणूसे"3 सावन २ भनुष्य। छथ छे ते “अणंतपएसिय खंध किं पुच्छा" मनत अशी સ્કંધને જાણે છે ? અને દેખે છે? અથવા જાણતા નથી અને हमत नयी १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ , "गोयमा!" त्यात હે ગૌતમ! કોઈ એક છવસ્થ મનુષ્ય એ હોય છે, કે જે તે અનંત પ્રદેશી २४ घने नये ५ छ भने मे ५ छ. १, अत्थेगइए जाणइ न पासई" તથા કોઈ એક છઘસ્થ એવા હોય છે કે જે તે અનંતપ્રદેશવાળા કંધને गणे तो छे, ५५ तेन हेमा नथी. २, अत्येगइए न जाणइ पासइ" तथा કોઈ એક ઇવસ્થ એવા હોય છે કે જેઓ અનંત પ્રદેશી સ્કંધને જાણતા नयी भने ५२ तेन हेमे छे, 3, “अत्यंगइए न जाणइ न पासइ" तथा ओ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩