Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्त्रे
समयं जाणइ' यस्मिन् समये पश्यति तस्मिन् समये जानाति दर्शनसमये ज्ञानं भवति ज्ञानसमये दर्शनं भवति न वाउभयोनिदर्शनयोः समानकालिकत्वं भवति नवेति प्रश्नाशयः, समानकालिकत्वस्य निषेधं कुर्वन्नेव भगवानाह-'णो इणटे समढे' नायमर्थः समर्थः ज्ञानदर्शनयोः समानकालिकत्वं न भवतीत्ययः, पुनः प्रश्नयनाह'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चई तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते परमाहोहिए णं मणूसे । परमावधिकः खलु मनुष्यः 'परमाणुपोग्गल जं समयं जाणइ तं समय नो पासई परमाणुपुद्गलं यस्मिन् समये जानाति नो तस्मिन् समये पश्यति तथा 'जं समयं पासइ नो तं समयं जाणई' यस्मिन् समये पश्यति तस्मिन् समये नो जानाति इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! में उसे देखता है क्या ? अथवा जिस समय में देखता है उसी समय में क्या वह उसे जानता है ? इस प्रश्नका आशय ऐसा है कि दर्शन के समय में ज्ञान होता है क्या ? या ज्ञान के समय में दर्शन होता है क्या ? ज्ञान दर्शन ये दोनों क्या एक ही काल में होते हैं ? या नहीं होते है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं । 'णो इणढे समढे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । अर्थात् ज्ञान और दर्शन समान काल में नहीं होते है । अब इस पर पुनः गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-- 'से केण?णं भंते !' हे भदन्त ऐसा आप किस कारण से कहते हैं की'परमाहोहिए णं मणूसे.' कि जो परमाधोवधिक छद्मस्थ मनुष्य है वह परमाणुपुद्गल को जिस समय में जानता है उस समय में वह उसे देखता नहीं है। तथा जिस समय में वह उसे देखता है। उस समय में वह उसे जानता नहीं है ? इसके उत्तर में प्रभु અથવા જે સમયે તેને દેખે છે, તે જ સમયે શું તેને જાણી શકે છે? આ પ્રશ્નનો હેતુ એ છે કે--દર્શનના સમયમાં જ્ઞાન અને દર્શન શું એક જ સમયમાં થાય છે? અથવા નથી થતા? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે ---"णो इणठे समठे" ॐ गौतम ! । म सरासर नथी. अर्थात ज्ञान અને દર્શન એક જ કાળે થતા નથી. આ વિષયમાં ફરીથી ગૌતમ સ્વામી प्रभुने पूछे छे --"से केणट्टेणं भंते !” 3 भगवन् ॥५ से प्रमाणे ॥ ॐारथी है। छ। ---"परमाहोहिए णं मणूसे०५ २ ५२भावधि छमस्थ મનુષ્ય છે, તે પરમાણુ યુદ્ધને જે સમયે જાણે છે, તે સમયે તેને તે માણસ જોઈ શકતા નથી. તથા જે સમયે તેને તે જોઈ શકે છે, તે સમયે त तनयता नथी. १ मा प्रक्षना उत्तरमा प्रभु ४ छ --"गोयमा !"
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩