Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
२०
प्रतीतेः । अथालोकस्याकारत्वेऽम्बकारावस्थायामप्यस्मदादीनां ज्ञानोत्पत्तिः स्यात् न चैवम् ; ततस्तद्भावे भावात्तदभावे चाभावात्तत्कार्यताऽस्य । अन्यथा धूमोप्यग्निजन्यो न स्यात्, तद्वयतिरेकेणान्यस्य तद्वयवस्थापकस्याभावादिति चेत् किं पुनरन्धकारावस्थायां ज्ञानं नास्ति ? तथा चेत् ; कथमन्धकारप्रतीति: ? तदन्तरेणापि प्रतीतावन्यत्रापि ज्ञानकल्पनानर्थक्यम् । 'प्रतीयते, ज्ञानं नास्ति' इति च स्ववचनविरोधः, प्रतीतेरेव ज्ञानत्वात् ।
प्रथान्धकाराख्यो विषय एव नास्ति यो ज्ञानेन परिच्छिद्य ेत, अन्धकारव्यवहारस्तु लोके
प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
होना और न होनेपर नहीं होना ऐसा निश्चय होनेसे ज्ञान प्रकाशका कार्य है । इस प्रकार ज्ञान और प्रकाश में कार्य कारण भाव होते हुए भी नहीं मानेंगे तो धूम अग्निका कार्य है अग्निसे उत्पन्न हुआ है ऐसा नहीं कह सकेंगे ? क्योंकि अन्वय व्यतिरेक को छोड़कर अन्य कोई साधन कार्य कारण भावको सिद्ध करने वाला दिखायो नहीं देता ?
समाधान:- ठीक है, किन्तु यह बताइये कि अंधकार में ज्ञान नहीं होता तो उसकी प्रतीति किस प्रकार होती ? यदि ज्ञान के विना ही अंधकार जाना जाता है तो अन्य घट आदि पदार्थ भी ज्ञानके विना जाने जा सकेंगे, फिर तो ज्ञानकी कल्पना करना ही व्यर्थ है बड़ा आश्चर्य है कि इधर कहते हैं कि अंधकार प्रतीत होता है और इधर कहते हैं कि ज्ञान नहीं होता सो यह स्ववचन बाधित कथन है, क्योंकि प्रतीति ही ज्ञान कहलाती है ।
?
नैयायिकः - हम तो अंधकार नामा पदार्थ ही नहीं मानते हैं, जिससे कि वह ज्ञान द्वारा जाना जाय, लोकमें अंधकारका व्यवहार तो मात्र ज्ञान की उत्पत्ति नहीं होने रूप है अन्य कुछ नहीं ।
जैन: -- यदि ऐसी बात कहो तो प्रकाशका भी प्रभाव हो जायगा, हम कह सकते हैं कि निर्मल ज्ञानका होना ही प्रकाश है, अन्य कुछ नहीं, लोकमें प्रकाशका जो व्यवहार होता है वह विशद ज्ञानकी उत्पत्ति होने रूप ही है ?
नैयायिकः:- ज्ञानका वैशद्य [ निर्मलता ] प्रकाशके अभाव में कैसे हो सकता है ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org