________________ सेठियाजैनप्रन्थमाला - 52 घोड़े की गति का स्वरूप- जो घोड़ा सवारी करने पा स्थिर न रह कर चपल रहे, वह उत्तम जाति का तेज घोड़ा होता है / जो घोड़ा तिरछी चाल से चलता हो, वह भी उत्तम जाति का होता है, और अपने स्वामी की संपत्ति बढ़ाता है / जिस घोड़े की चाल धीमी और सवार को कष्ट पहुँचाने वाली हो, वह कनिष्ट (हलकी) जाति का होता है। जिस घोड़े की चाल सुख पहुँचाने वाली हो, वह उत्तम जाति का अश्व होता है। जिस घोड़े के दौड़ने से थक जाने के कारण फेन (माग) आते हों, वह भी उत्तम जाति का है और अपने स्वामी की लक्ष्मी बढ़ाता है। जिस घोड़े के सब पैर तेज चाल के समय जमीन को स्पर्श न करते हों, वह उत्तम जाति का अश्व होता है / 53 घोड़े के शब्द (हिनहिनाने) का स्वरूप-- जिस घोड़े का शब्द गंभीर हो, वह उत्तम जाति का होता है, तथा अपने स्वामी की लक्ष्मी बढ़ाता है / जिस घोडे का शब्द तीव्र और भयानक होता है, वह अपने स्वामी के परिवार का तुरत नाश करता है। जिस घोड़े का नाद (शब्द) सूक्ष्म होता है, वह हलकी जाति का होता है, तथा हानि पहुँचाता है / जो घोड़ा बार बार हिनहिनाता हो, वह अपने स्वामी के महत्व का नाश करता है। जो घोड़ा कभी 2 तथा प्रयाण के समय हिनहिनाता हो, वह कल्याण तथा लाभ की सूचना करता है और विजय दिलाता है /