________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला वैसे ही संसार भी मिथ्यात्व के बिना नहीं चल सकता / गाड़ी का पहिया, बीच की लकड़ियों पर टिका रहता है, इसी प्रकार संसार भी शंका और प्रमाद पर अवलम्बित है। इन उपमाओं का तत्त्व समझकर संसार से मुक्त होने के उपाय ढूँढ निकालना चाहिये / सागर जैसे सुदृढ़ नौका और विश्वसनीय कर्णधार की सहायता से पार किया जा सकता है वैसे ही संसार रूपी सागर भी सद्धर्म रूपी नौका और सद्गुरु रूपी नाविक की सहायता से पार किया जा सकता है। जैसे अग्नि सबको भस्म कर डालती है पर पानी से बुझ जाती है वैसे ही संसाराग्नि संयम और वैराग्य रूपी पानी से बुझ जाती है। जैसे अंधकार में दीपक जलते ही सब कुछ दिखायी पड़ने लगता है, वैसे ही संसार रूपी अंधकार में ज्ञान का दीपक प्रकाश फैलाकर सब को ठीक ठीक प्रकाशित कर देता है। जैसे गाड़ी का पहिया बैलों के विना गन्तव्य स्थान पर नहीं जा सकता, वैसे ही संसार चक्र भी रागद्वेष के बिना नहीं चल सकता / संसार चक्र त्यागने की इच्छा वालों को रागद्वेष का त्याग करना चाहिए।