________________ सेठिया जैन प्रग्यमाला जोबन ने विदा लीनी जरा ने जुहार कीनी, हीनी भई सुधि बुधि सबै बात ऊनीसी। तेज घट्यो ताव घट्यो जीतव कोचाव घटयो, और सब घट्यो एक तिस्ना दिन दूनीसी।६। अहो इन प्रायने प्रभाग उदे नाहिं जानी, वीतराग वानीसार दयारस भीनी है। जोवन के जोर थिर जंगम अनेक जीव, जानि जे सताये कछु करुना न कीनी है / तेई अब जीवरास प्राये परलोक पास, लेंगे बैर देंगे दुख भई ना नवीनी है / उनही के भय को भरोसो जान कांपत है, . . . या ही डर डोकरा ने लाठी हाथ लीनी है / / जाकी इंद्र चाह अहमिन्द्र से उमाहे जासौं / जीव मुक्ति माहिं जाय भौ-मल बहाव है। / " ऐसो नरजन्म पाय विषै विष खायखोयो, / जैसे कांच साटै मूढ़ मानक गमावे है॥ 1. माया नदी बूडिभीजाकाया बल तेज छीजा ... . .. आयो पन तीजा अब कहा वनि श्राव है।.. :: तातें निज सीस ढोलै नीचे नैन किये डोले, __कहा बढि वोलै बृद्ध वदन दुरावै है // 8 // : (मत्तगयंद सवैया) देखहु जोर जरा भटका, जमराज महीपति को अगवानी / उज्वल केस निसान धरै, बहु रोगन की संग फौज पलानी //