________________ सेठिया जैन प्रन्यमानाः - सच है-प्रतिसमय अनन्त कर्मों का बंध होतारहता है / जीव यदि एक समय के लिए शुभ परिणाम रक्खे अनन्त शुभ कर्मों का उपार्जन कर सकता है। मनुष्य को चाहिए कि प्रतिसमय मन पर अंकुश रक्खे ओर शुद्ध भावों को प्राप्त करने की चेष्टा करता रहे। . कठिन शब्दों के अर्थ - कंपवाट- खेद, चिन्ता। प्रव्रज्या- दीक्षा / कचों. बालों / कासकच्चापन / कचियाता है. आगा पीछा करता है / वल्कल-काल / महिषी-भैंस / अनभिज्ञ- अजान / गणिकाएँ, वेश्याएँ / रफूचक्कर- होना- चम्पत होना, भाग जाना / मृगपोत- हरिण का बच्चा / तनया- लड़की / पट्टहस्ती- मुख्य हाथी / उत्तरीय वस्त्र- प्रोढने का कपड़ा / श्रमण- साधु / दुन्दुभि- एक प्रकार का बाजा। अटपटा कर- मिला कर / अल्पवयस्क- थोडी उम्र का। पाठ 41 वाँ अमृत वाणी अनुभव जीधन का जीवन और विकास का साधन है। मनुष्य को जब तक शुभ और अशुभ दोनों प्रकार का अनुभव न हो उखे' भले-बुरे का विवेक ही कैसे हो सकता है ?