Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 02
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 615
________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (147) स पाठ 42 वाँ प्रादर्श दम्पति प्रातः काल का समय था / नियमित परिपाटी के अनुसार गुरुदेव के व्याख्यान का समय हो रहा था। श्रावक और श्राविकाओं के समूह के समूह उपाश्रय की ओर बढ़े चले जाते थे / सबकी दृष्टि गन्तव्य मार्ग में गड़ी हुई थी शायद इसलिए कि पदाघात से किसी जीव जन्तु की हिंसा से पाप के गढ़े में नगिर पड़े। धरती की ओर भुके हुए सर के मस्तक ऐसे मालूम होते थे,जैसे गुरुभक्ति केभार से ही मुक गए हों / बगल में मनोहर महल अपना सिर ऊँचा किए खड़े थे। किन्तु इनमें से कोई उनकी ओर प्रांख उठाकर भी न देखता था, जिससे साफ प्रकट होता था कि इनकी दृष्टि में गुरुभक्ति और धर्म के सामने इन महलों का कुछ भी महत्व नहीं है / जो लोग उपाश्रय में पहुँचते, वे गुरु महाराज को विधिपूर्वक वन्दना नमस्कार करके उनकी सुख-साता पूछकर शिष्टाचार का पालन कर नियत स्थान पर बैठते जाते थे। . व्याख्यान का समय हो चुका / गुरु महाराज ने अपने मुखचन्द्र से उपदेश-पीयूष की वर्षा करना प्रारम्भ किया, श्रोता जन बड़े चाव से उसे पान करने लगे। उनके चेहरे प्रसन्न थे,मानो उपदेशामृत का पान करके अजमरामर होने से उनके सब मनोरथ पूरे हो गये हैं / महाराज ने श्राज ब्रह्मचर्य की महिमा बताई। धे कहने लगे-भद्रजीवो! ब्रह्मचर्य मानवजीवन की शान्ति का प्रथम सोपान है / जिसने इस वासना को जीता, उसे शेष चार इन्दियों को जोतना बहुत सुगम है / अतः पहले पहल इस वासना का

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