________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा ' विचार वचन और वर्तन में सत्य की बान डालने से, शनैः शनैः आध्यात्मिक-आन्तर-दृष्टि जागृत होती है / वह दृष्टिशान्त होने पर भी इतनी तीक्ष्ण होती है कि माया के प्रत्येक प्रावरण की धज्जियां उड़ा देती है-उसके सामने किसी प्रकार का कपट सफल नहीं हो सकता। छोटी-मोटी असुविधाओं की ओर, भोजन-प्रानन्द की ओर और शारीरिक सुखों की ओर विरक्ति धारण करने का अभ्यास डालो / बाह्य वस्तुओं के संयोग और वियोग को उदारता पूर्वक * सहन करो। दुखों का सत्कार न करो तो दुत्कार भी न दो। (4) मन को संयत बनाने के लिए, हमारे मन में कैसे विचार पाते हैं, इसकी छानवीन सदैव रखनी चाहिए और विचारों की पसंदगी का कार्य सदा चालू रहना चाहिए / (5) तुम्हें शीव्र ही भान होने लगेगा कि ज्यों-ज्यों तुम अपने मन में शुभ या शुद्ध विचारों का स्वागत और अशुभ का निग्रह करते हो, त्यों-त्यों स्वतः ही शुभ विचार तुम्हारे मन में अधिक आने लगेंगे और अशुभ विचार कम / जिसे, किसी व्यक्ति पर पूज्यभाव न हो उसे अपने मन को