Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 02
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 617
________________ हिन्दी बाल-शिक्षा (149) A rchardwormerum. वृत्तिका बल बढ़ता जाता है। किसी वृत्ति को काबू में करने के लिए धीरे 2 प्रयत्न करना चाहिए" ___ "गुरुजी' आपका कहना यथार्थ है / संयम तन और मन को उन्नत बनाकर आध्यात्मिक जीवन का साक्षात्कार कराता है। मैं इस प्रकार का जीवन व्यतीत करने के लिए अधीर हो रही हूँ क्याइसम आप सहायता न करेंगे?" "अच्छा, मेरा कहना मानोगी?।" “जी हां" कहकर वालिका महाराज की ओर उत्कण्टा से देखने लगी "बालिके! तू इतनी प्रतिज्ञा कर कि-"कृष्णपक्ष में मन वचन और काय से जीवन पर्यन्त शुद्ध ब्रह्मचर्य पालूंगी।" . ___ "गुरुजी ! आशा स्वीकार है।" कहकर बालिका खुशी-खुशी चली गई, बालिका का नाम विजया था। उसके पिता का नाम धनावह था / धनावह कच्छदेश के नामी सेठ थे। + + + + + + : . उसी नगर में एक अहहास सेठ रहते थे। उनके लड़के का नाम विजयकुमार था / विजयकुमार बहुत प्रतापी था / उसने भी एक दिन गुरु महाराज के श्रीमुख से ब्रह्मचर्य का महत्व सुनकर शुक्लपक्ष में ब्रह्मचर्य पालन करने की प्रतिज्ञा ली। जिस दिन विजयकुमार प्रतिक्षा लेकर घर लौठा उसी दिन, अईहास ने उसकी सगाई को चर्चा छड़ी। वे बोले-"विजय ! प्राज इसी नगर में रहने वाले धनावह श्रेष्ठी के यहां से सगाई की बात कही गई है। तुम्हारी क्या इच्छा है?" :

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