Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 02
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 626
________________ सेठिया जैन प्रयास थो दिन पल्क्ल के तीर में बिता ले हंस, देख व्योम बीच मेघव्यूह चलने लगा। कुछ दिनों केतकी के कांटों से बचा ले अङ्ग, देख भृङ्ग जलज का जाल खिलने लगा। कुछ काल खेल खाके भग जा विदेशी खंज, देख अग्नि कुण्ड-सा दिनेश जलने लगा। इने गिने दिनों तक धैर्य रख सुजन तू , देख वह दुर्जन का पांव हिलने लगा // अलधि के मध्य से निकल के उपोरशङ्ख, सच बोल यहां पर किस हेतु आया है। निपट लबार और हो के धोखेबाज तू ने, अति भव्य शुभ्र रूप किस भांति पाया है ? वचन के दान करने से कभी चूकता न, बड़े बड़ों को भी वाक्यजाल में फँसाया है। तुझ से किसीने कुछ पाया नहीं आज तक, जिसको मिलाया उसे धूल में मिलाया है। हमी गुरु शिष्य हमी बाल वृद्ध और हमों, .. प्रजा प्रजानाथ और हमी लेय ज्ञान हैं। धनिक भिखारी हमी, सुखित दुखारी हमी, हमी गुणचान ही दोष के मिधान हैं। ही है अनार हमी नाय हैं सनाथ के भी,

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