________________ सेठिया जैन प्रम्यमाला चन्दन--सुगन्ध को दिगन्त पहुँचाता है। दूसरे के दोष को न देखता सुजन कभी, . पर-गुण-गण खोजना ही उसे आता है / छाया,फूल,फल,शाखो देता है सभी को सदा, चाहे आप जाके उसे सींचिए या काटिए। शीतल सुस्वादुनीर कूप क्या पिलाता नहीं, मन चाहे आप उसे खोदिए या पाटिए॥.. सभी की चुधा को समभाव से बुझात अन्न, .. .चाहे उसे सलिल से धोइए या छांटिए / सुजन परार्थ से न मुख मोड़ता है कभी, __ चाहे उसे स्तुति को सुनाइए या डांटिए / कैसा वह पारस जो लोहा को न सोना करे, विप्र वह कैसा जिसे शास्त्र कान शान है? वज वह कैसा जो न पर्वतों को चूर्ण करे, कैसा बह क्षत्री जो कि नहीं बलवान है? कल्प-तरु कैसा जो न कामना को पूर्ण करे, वैश्य वह कैसा जो कि करता न दान है? खल वह कैसा जोन निन्दा करेसज्जनों की, साधु वह कैसा जिसे खलपर न ध्यान है? शिर-मात्र शेष रह जाने पर भी सरोष, क्या न राहु शत्रुओं से बदला चुकाता है?