Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 02
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 610
________________ (142) सेठिया जैन-प्रन्यमाना . एक समय की बात है कि ज्ञातनन्दन प्रभु महावीर का वैभारगिरि पर समवसरण पाया / राजगृह से महाराज श्रेणिक उनके दर्शनों के लिए गये / मार्ग में किसी वन में राजर्षि प्रसन्नचन्द्र एकाग्र मन से प्रात्म-ध्यान में लवलीन थे। महाराज श्रेणिक ने महावीर स्वामी को यथाविधि वन्दना की और पूछा-भगवान् मार्ग में मैंने श्रीमान् प्रसन्नचन्द्र राजर्षि को ध्यानस्थ देखा और वन्दना की। प्रभो! यदि उनका इसी समय शरीरान्त हो जाय तो किसी गति में जावें? भगवान् ने शान्त स्वर में उत्तर दियासातवें नरक में / यह उत्तर सुन श्रेणिक विस्मित सा हो रहा / उसने फिर पूछा-प्रभो! राजर्षि प्रसन्नचन्द्र का यदि अभी शरीरान्त हो, तो किस गति में जावें? भगवान ने उत्तर दियाछठे नरक में। इस नये उत्तर को सुनकर श्रेणिक का संशय और बढ़ गया। उसने उत्कण्ठित होकर फिर वही प्रश्न किया। अब की बार भगवान् बोले पांचवें नरक में / यह तीसरे ही उत्तर से भेणिक के विस्मय का ठिकाना न रहा / एक ही प्रश्न और उत्तर दाता केवली / भूत होने की आशंका नहीं, फिर भिन्न 2 उतर क्यों मिल रहे हैं ? यह बात श्रेणिक को समझ में न आ सकी / वह वारम्बार वही प्रश्न पूछने लगा और भगवान् प्रत्येक बार जुदे 2 ही उत्तर देने लगे ! अन्त में सर्वार्थसिद्धि का नम्बर पाया भगवान ने कहा-यदि राजर्षि का इस समय देहान्त हो तो सर्वार्थसिद्धि विमान में जावें / किन्तु श्रेणिक का संशय न मिटा। अब की बार उसने पूछा-भगवान् ! ऐसा शकाजनक उत्तर क्यों दे रहे हैं ? भगवान् उत्तर देने को ही थे कि गगन में देवदुन्दुभि का नाद होने लगा / श्रेणिक के नाद का निदान-कारण-पूछने परथगवान पहले जैसे शान्त स्वर में बोले-राजर्षि प्रसचन

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