Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 02
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 609
________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (141) जन्मते ही माता परलोकवासिनी हो गई। किसी तरह पिता ने पाला-पोसा, लाडू-प्यार कर बड़ा किया, तो बुढ़ापे में उनका परित्याग कर भोग-विलासों में मस्त हो रहा! तेरा जैसा दुष्ट संसार में दूसरा कौन होगा? इस प्रकार विचारकर वल्कलचीरी ने पिता के पास जाने का निश्चय किया / उसने प्रसन्नचन्द्र से कहा- "मैं जब से पिताजी को छोड़कर पाया हूँ, कभी वन्दना करने नहीं गया / अब, जब तक पिताजी के दर्शन न कर लूंगा, नब तक पाहार ग्रहण न करूंगा।"प्रसन्नचन्द्र उसकी हद प्रतिक्षा सुन स्वयं भी दर्शनार्थ जाने को उद्यत हो गया। दोनों भाई मिल कर पिता के पास पहुंचे। उनके चरणा-कसलों में प्रगाम करके दोनों सामने बैठे / पिताने उन्हें गोद में विटलाया, उस समय उनके प्रानन्दाधु बह निकले। कुछ देर बाद वल्कलचोरी वहां पहुंचा, जहां वह पहिले उपकरण किया गया था। वे सब धूल से भर गये थे, इसलिए अपने उत्तरीयवस्त्र से पोंछन लगा। पोंछते 2 उसे जातिस्मरण शान हो गया। उसने देखा कि मैं पहले भव में जैन श्रमण था और उसी के पगय प्रताप मे देवलोक में जाकर यहांराजपुत्र हुआ है। विचार करते 2 उसके हृदय समुद्र में वैराग्य की लहर उमड़ी बारह यावनाओं का चिन्तन करते 2 थोड़ी देर में ही उसे केवलज्ञान हो गया। उसी समय केवली वल्कलचीरी ने राजर्षि सोमचन्द्र और राजा प्रसन्नचन्द्र को धर्मोपदेश दिया। सब मिलकर भगवान महावीर के पास, जो उस समय पातनपुर में विराजमान . पहंचे। वहां भगवान की दिव्यध्वनि सुनकर राजर्षि और राजा दानों ने जननीक्षा अङ्गीकार की।

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