Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 02
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 607
________________ हिन्दी-बाल-शिक्षाः . Ajmerner निवास है, यहां तुम्हारा दर्शन करने और तुम्हारी भक्ति करने आये हैं ! गणिकाओं की बात सुन अतिथिसत्कारक वल्कलचीरी बोला--मैं ये फल-फूल वन से लाया हूँ इन्हें ग्रहण कीजिये / अाज अापका सत्कार करके में कृतार्थ हुआ। वेश्याए बोली -... आपके फल बिलकुल नीरस हैं, इन्हें खाने को जी नहीं चाहता। हमारे पोतनाश्रम के फल अत्यन्त स्वादिष्ट हैं, उन्हें खाने के लिए मुंह से लार टपक पड़ती है / वल्कलबीरो ने उत्सुक होकर फल देखना चाहा, तो गणिकाओं ने सुस्वादु मोदक दिखाकर खाने को कहा / उसने एसे सरस फल कभी खाये न थे, अतः उसे वे बहुत रुचे। वह जिह्वा इन्द्रिय के प्रलोभन में फसकर उन रंगे सियार तापसों के साथ चलने को कटिबद्ध हो गया / वेश्याएँ अनायास ही अपनी सफलतासमझकर फलीन समाई। वल्कलचारी उपकरण रखकर ज्यों ही आश्चम से लौट रहा था, त्यों हो सब वेश्याएँ राजर्षि सोमचन्द्र को आते देख रफूचक्कर हो गई। वल्कलचोरी मृगपात की भांति अकेस्ता हो कर इधर-उधर भटकने लगा / इतने में पोतनपुर जाने वाला एक रथी उसे दृष्टिगोचर हुआ। उसे देख उसने नमस्कार किया और उसी के साथ हो लिया। वल्कलचौरी रथ में बैठी हुई स्त्री को देखकर बोला-तात! नमस्कार ! रथी समझ गया कि इस तापस का वन में ही जन्म और लालन-पालन हुआ है, इसीसे इसे स्त्री-पुरुष का भेद नहीं मालूम है / कुछ दूर चलने पर वल्कलचीरी खेदखिन्न होकर फिर बोला-इन हरिणों को रथ में जोतकर वृथा ताड़ना क्यों देते हो? रथी ने कह दिया-इन बलों ने पूर्वजन्म में ऐसे ही कर्म किये हैं, उसी का इन्हें फल मिल रहा है। इस प्रकार बातचीत करते 2 पोतनपुर श्रा गया।

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