Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 02
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

View full book text
Previous | Next

Page 606
________________ .(138) सेठिया जैन ग्रन्थमाला पड़ गया। रानी धारिणी मस्कर स्वर्ग गई। उसने अवधि शान से अपने पूर्वभव का सारा वृत्तान्त जाना और पुत्र-मोह से मोहित हो, महिषी का रूप बना वल्कलचीरों को दूध पिलाने लगी। ..बालक वल्कलचोरी शनैः शनैः बढ़ते 2 बड़ा हुअा। वन के फलफूलों पर ही उसका निर्वाह होता था / जन्म से ही वह एकान्त कानन में रहा था, अतएव वह लोक-व्यवहार से सर्वथा अनभिन्न था। ... इधर राजा प्रसन्नचन्द्र को जब यह समाचार विदित हुआ कि उसका छोटा भाई पिता के साथ वन में रहता है, तो उसने उसे किसी विश्वस्त आदमी को भेजकर बुला भेजा / किन्तु वल्कलचीरी आने को राजी न हुआ / उसे पाया न देख उसने एक नवीन युक्ति निकाली। उसने कुछ वेश्याओं को बुलाया और सब बात समझाकर, प्रलोभन द्वारा बुलाने को कहा। घेश्याएँ सज-धज कर तरह के मिष्टान्न लेकर सिंहपोत वन में, जहां कि वल्कलचीरी अपने पिता के साथ निवास करते थे, रवाना हुई। .. वन में जाकर वेश्याओं ने एक बाल ब्रह्मचारी क्षत्रियपुत्र को देखा। उसके ललाट पर दिव्य तेज विराज रहा था / शरीर सुभग, सुदृढ़ और कान्त था / गणिकाएँ उसे देख आपस में बतियाने लगी-यह तापसकुमार कौन होगा? इतने में वल्कलचीरी भी उनके पास प्रापहुँचा / वह बाह्य बातों से अभिज्ञ तो था ही नहीं, गणिकाओं को देखकर उन्हें वन्दना की और बोला-- अहो तापसो! आप कहां से पधारे हैं? आपका आश्रम कहां है? कहां जाइयेगा? वेश्याएँ आकारप्रकार से उसे ताड़ गई और बोली हम लोग वीतराग के यति हैं, पोतन नामक प्राश्नम में हमारा

Loading...

Page Navigation
1 ... 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630