________________ (112) सेठिया जैन ग्रन्थमाला इस प्रकार परिवर्तनशील जगत् में मोहित रहना धिक्कार योग्य है।" इस प्रकार बिचार कर श्री हनुमानजी ने अपने पुत्रों को राज्य दे धर्मरत्न नामक प्राचार्य से जैन--दीक्षा लेली। हनुमानजी के साथ अन्य साढे सात सौ राजाओं ने भी दीक्षा ली थी / अन्त में मुनि हनुमान ने कर्मेन्धन को भस्म कर मुक्ति को प्राप्त किया। " प्यारे बालको! श्री हनुमानजी के इस संक्षिप्त चरित्र से तुम भलीभांति समझ सकते हो कि वे कैसे धीर, वीर, पराक्रमी और धर्मात्मा थे। उन्होंने अपने सांसारिक जीवन में शरीरबल से अनेक बार विजयश्री को प्राप्त किया और आध्यात्मिक जीवन में आत्मबल से मुक्तिश्री को प्राप्त किया। ऐसे महान् पुरुषों को पशु कहना, बन्दर समझना महान पाप का कारण है। ... इसी प्रकार सुग्रीव नील, प्रतिसूर्य. गवय, गवाक्ष आदि भी विद्याधर राजा थे। इन में प्रायः सभी मुक्त हुए हैं। रावण विभीषण आदि भी सभ्य मनुष्य थे, राक्षस नहीं / इनका बंश राक्षसवंश' कहलाता था। इसीसे ये भी राक्षस कहलाने लगे, वस्तुतः उन्हें राक्षस कहना सर्वथा मिथ्या है / वानर वंश और राक्षसवंश की उत्पत्ति कैसे हुई? क्यों उनके ऐसे नाम पड़े ? इत्यादि सब बातों का विस्तृत वर्णन जैनों के कथाग्रन्थों में पाया जाता है। .... बंगाल में वानर गोत्र, जिसका रूपान्तर 'वैनर्जी हो गया है, अब तक प्रसिद्ध है / किन्तु वानर गोत्र में उत्पन्न होने ही से उन्हें वानर नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार के और भी कितने ही गोत्र विभिन्न प्रान्तों में प्रचलित हैं। जैसे गोधा, वया, सियार, नाहर, कौशिक