Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 02
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 599
________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा इन्द्र०-- तुम्हारे विचार से संसार में एक भी सिद्धान्त एक भी सम्प्रदाय और एक भी देव सञ्चा न होना चाहिए / स्वीकार नहीं करते हैं / किसी सिद्धान्त की सत्यता सब या अधिक लोगों की मान्यता से नहीं होती यह उससे बिलकुल भिन्न वस्तु है। लोग ज्ञान या चारित्र की कमी से या अपनी प्रतिष्ठा के लिए सखे सिद्धात को न मानकर भिन्न सम्प्रदाय खड़े करते हैं / यह सब है कि किसी 2 श्राचार्य ने स्याद्वाद को असत्य बतलाया है, परन्तु निष्पक्ष विद्वानों ने उनकी इस कृति को हास्यास्पद ही समझा है। शान्ति- अच्छा ये बातें जाने दो, तुम कहते हो स्यावाद से मेर विरोध का विनाश होता है / सो कैसे ? इन्द्र०- सुनो। किमी जगह थोड़े से अन्धे बैठे थे। भाग्य से वहां एक हाथी आ निकला। सब के सब हाथी के निकट पहुँचे ।किसी ने राँड़ पकड़ी तो किसी ने कान, किसी ने जांध पकड़ी तो किसी ने खीसें, किसी ने पूंछ पकड़ी तो किसी ने पीठ / सबने समझा, हमने हाथी पकड़ लिया है / सब अपने 2 ज्ञान का सखा समझ सन्तुष्ट हो गये। कालान्तर में हाथी की चर्चा छिड़ी। जिसने पूछ पकड़ी थी वह बोला-हाथी रस्सा सरीखा होता है। सूह पकड़ने वाला दूसरा अंधा उसकी बात काट कर बोला-फूठ, बिलकुछ भूठ / हाथी रस्सा सरीखा नहीं होता वह तो खंभ सरीखा होता है। तीसरा बोला-यांखें काम नहीं. देतीं तो ध्या

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