Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 02
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 600
________________ (132) सेठिया जैन ग्रन्थमाला हुआ? हाथ तो धोखा नहीं दे सकते। मैंने हाथी को टटोलकर देखा था, वह सूप (छाज) ऐसा था / तुम नाहक ही चकमा देना चाहते हो। तीनों की बात सुनकर चौथे सूरदास बोले-पहले पाप किये सो अंधे हुए, अब झूठ बोल कर क्यों उन पापों की जड़ों में जल सींचते हो। हाथी तो दण्ड सरीखा था। इस तरह सब में वाग्युद्ध ठन गया। एक दूसरे की भर्त्सना करने लगे। यह हाल देखकर कोई एक अांखां वाले सत्पुरुष पधारे / उन्हें अन्धों की आपस की चै-मैं सुनकर हँसी आई / पर दूसरे हो क्षण उनका चेहरा गम्भीर हो गया। उन्होंने सोचा-भूल हो जाना अपराध नहीं है, परन्तु किसी की भूल पर हँसना अपराध है। उनका हृदय करुणाई हो गया / उन्होंने कहा--भाइयो! मेरी बात सुनो। भिन्न 2 अपेक्षाओं से तुम सब सच्चे हो / कोई किसी को झूठा न कहीं सब को सच्चा समझो। हाथी रस्सा सरीखा भी है, सूप सरीखा भी है और खंभा सरीखा भी है / तुम हाथी के एक 2 अंग को ही हाथी समझ रहे हो / यही तुम्हारी भूल है / इस प्रकार उस सज्जन ने समझा-बुझाकर आग में पानी डाला। ... इसी प्रकार संसार में जितने एकान्तवादी सम्प्रदाय हैं वे पदार्थ के एक 2 अंश-धर्म को ही पूरा पदार्थ समझते हैं। इसीलिए दूसरों से लड़ते झगड़ते हैं। पर वास्तव में वह पदार्थ नहीं, पदार्थ का एक अंशमात्र है / स्याद्वादबतलाता है कि वह मान्यता किसी एक दृष्टि से ही ठीक हो सकती है, उसे सर्वथा ठीक

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