________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला तब ही धार्मिक क्षेत्र में रामराज्य होगा / शान्ति! शान्ति से विचार करो। शान्ति-मैं इस समय विस्मित सा हो गया हूँ। आपने दार्शनिक तत्त्वों के रहस्योद्घाटन के लिए जो कुञ्जिका बतलाई है, वह बड़ी सीधी-साधी और विचित्र है / मानों में किसी नवीन सृष्टि में आ पड़ा हूँ / जिन्हें मैं हमेशा देखा करता था, वे ही पदार्थ आज विलक्षण मालूम होते हैं। स्वयं मुझ में भी कुछ नवीनता सी आ गई मालूम होती है। इन्द्र- तुम वही हो, सृष्टि वही है, केवल दृष्टि में परिवर्तन हुआ है / बात यह है कि स्याद्वाद प्रत्येक पदार्थ को पृथक् 2 पहलुओं से प्रतीत कराता है, अतएव उससे पदार्थ का पूर्ण ज्ञान हो जाता है, और स्याद्वाद का प्रतिपक्ष-एकान्तवाद पदार्थ के एक ही अंश को बतलाता है, अतः उससे अधूरा ज्ञान होता है। अब तक तुम पदार्थ के अधूरे-अपूर्ण ज्ञान को ही पूरा समझे बैठे थे, अब पूरे और अधूरे का भेद समझे हो। इसीसे सर्वत्र विलक्षणता मालूम होती है। शान्ति- तुम स्याद्वाद की बहुत उपयोगिता बतलाते हो, यदि ऐसा होता तो जगत में जितने ऋषि महर्षि हुए उन सबने इसे स्वीकार किया होता। अच्छी चीज कौन नहीं स्वीकार करता। यही नहीं, सुनते हैं किसी 2 ने तो स्याद्वाद को असत्य बतलाया है / इसका क्या कारण है?