________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा . .पाठ 38 वा स्याद्वाद हन्द्र०- शान्ति, ओ शान्ति ! वह मनुष्य, जो यहां होकर गया है, बहुत ऊँचा था। शान्ति- (एक लम्बा बड़ का वृक्ष दिखाकर) इस वृक्ष से भी - ऊँचा था? .. इन्द्र०- आजकल कहीं इतना ऊँचा प्रादमी मुना भी है ? भाई! वह अन्य मनुष्यों से ऊँचा था, किन्तु इस पेड़ से तो नीचा ही था। शान्ति-- तुम बड़े विचित्र मनुष्य प्रतीत होते हो, छोटा भी कहते जाते हो और बड़ा भी बतलाते हो। तुम्हारी बातों का कुछ ठिकाना भी है ? भला, जब छोटा है तो बड़ा क्यों - बतलाते हो? और यदि बड़ा है तो बड़ से छोटा क्यों कहते हो? एक ही वस्तु में विरुद्ध धर्म नहीं पाये जा सकते। इन्द्र०- भाई ! एक ही चीज से बड़ा और छोटा बताया जाय तो विरोध हो सकता है। मैं भिन्न 2 अपेक्षाओं से बड़ा छोटा बतलाता है / बड़ की अपेक्षा छोटा और हमारी तुम्हारी अपेक्षा बड़ा। अब विरोध कैसे हो सकता है। अच्छा, तुम ही बताओ, तुम छोटे हो या .... बड़े? शान्ति- मैं छोटा हूँ!