________________ हिन्दी चाल-शिक्षा (125) गर्म कर्म भर्महार पर्म शर्म धर्म धार, जैति विघ्ननिघ्नकार धीमते सुधारक / श्रौनकै पुकार मोहि लीजिये उवार है, उदारकीर्तिधार 'कल्पवृष्छ-इच्छकारकं // कठिन शब्दों के अर्थ / जिय- जीव / प्रातुर- उत्सुक / उपवि- कमाता है / नेह (स्नेह) प्रेम / रतीपति- कामदेव / सचीपति- इन्द्र / जेक- जरा भी / घट- यहां हृदय अर्थ है। कोक- चकवा, एक प्रकार का पक्षो / लोकलोक- समस्त लोक को जानने वाले। पाहि- रक्षा करो / नैति- विजयी है / विघ्ननिनकार- विघ्नविनाशक / श्रौनकैसुन कर / उवार- तार / कल्पवृच्छ-इच्छकारक- कल्पवृक्ष की तरह मनचाहा फल देने वाले / पाठ 37 वाँ अमृत-वाणी - सजन पुरुष को उचित है कि जैसे वह किसी साधु पुरुष के सामने नम्र वचन बोलता हो वैसे ही दुष्ट पुरुष के सामने भी हाथ जोड़ कर बोले-दुष्ट को तो अवश्य ही मीठी मीठी बातों से सन्तुष्ट करके छोडे / जो मनुष्य प्रेम, सत्कार और मित्रता की