________________ (126) सेठिया जैन ग्रन्थमाला -~-~ ~ror इच्छा रखते हैं तथा प्रिय वचन बोलते हैं वे मनुष्य के रूप में देवता हैं। -शुक्राचार्य। संतोष कहां रहता है ? गरीब के टूटे फूटे झोपड़े में / प्रेम कहां रहता है? माता के अंचल में। प्रानन्द कहां रहता है? बच्चे की तोतली बोली में / स्वर्ग कहां पर है ? ईमानदार की मुट्ठी में। दरिद्रता कहां रहती है? लोभी के हृदय में / नाश कहां रहता है ? कंजूस के गड़े हुए धन में। दुःख कहां वसता है? कर्कशा स्त्री जिस घर में हो / पाप का अड्डा कहां है? दिल की खोटाई में। .. .. -महात्मा कनफ्यूशश। (3) स्वाधीनता में ही सुख है, पराधीनता ही दुःखों की जड़ है। बन में तोते सुख से कितना चहकते हैं किन्तु वही सोने के पिंजड़े में रखने पर भी दुःखी जान पड़ते हैं। -बाबा दीनदयाल गिरि। संसार में मित्र बहुत कम हैं और इसीलिए मँहगे भी हैं। -पोलक यह विश्वासरखो कि तुम्हारा सच्चा मित्र वही है जो तुम्हारी घृणा और नाराजगी की कुछ परवाह न करके तुम्हारी भूलों को एकान्त में तुम्हें बतलाता है। .. .. -सर.बाबर रेले /