________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला नीति को दिढाव होयविन को बढ़ाव होय, उपजै उछाहज्यों प्रधान पद लियेसो॥ धर्म को प्रकाश होय दुर्गति को नाश होय, : बरतै समाधिज्यों पियूष-रसपियेसों। तोष परिपूर होय दोष दृष्टि दूर होय, एते गुन होहिं सतसंगत के कियेसों॥ कठिन शब्दों के अर्थ मतङ्गज- हाथी / बाहत- फेंकता है / चपला विजली / कमला- लक्ष्मी। कुलटा- दुराचारिणी स्त्री / सांई- पति, स्वामी / सिरमौर - श्रेष्ठ, शिरोमणि / पल्लव- कोंपल / पहुप-फूल। विरख-वृक्ष / निकंद नाश / जागमगे-जगमगाता है। दिढाव-दृढ़ता / तोष- संतोष। पाठ 33 वाँ .: शिक्षाप्रद प्रश्नोत्तर कहते हैं एक बार अकबर बादशाह ने बीरबल से कहा"बोरबल! ऐसी चार वस्तुएँ लाओ जिनमें से एक यहां हो वहां नहीं, दूसरी यहां नहीं वहां हो, तीसरी यहां वहां दोनों जगह न हो तथा चौथी यहां और वहां दोनों जगह हो / बीरबल बड़ा बुद्धिमान था / वह बादशाह का प्राशय तुरंत समझ गया और चारों वस्तुओं के लाने की प्रतिज्ञा करके चला आयो / नगर में जाकर एक वेश्या, एक साधु, एकं पाखंगडी संन्यासी और एक