________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा शिष्य-भगवन् ! एक बात समझ में नहीं आई / जीव की निज वस्तु उसके पास ही है तो फिर कौन सी वस्तु प्राप्त करना शेष रहा? उसे यह जीव भूल गया अथवा खो बैठा, यह कैसे हो सकता है! गुरु- वत्स ! यह जीव अनादि काल से रागद्वेष के वश होकर अपने चेतना धर्म को भूला हुआ है / जैसे एक जलाशय निर्मल, मधुर और शील जल से भरा हुआ है / पीछे उसपर काई अथवा शैवाल छा गया। अब तो वे गुण वैसे न रहे। पहले जैसी शीतलतान रही, निर्मलता नष्ट हो गयी और मिठास दूर हो गया / यही हाल जीव का भी है उसका चेतनाधर्म कुसंस्कार और राग द्वेष से दब गया है। एक बात और समझ लेनी चाहिये कि शैवात जल से ही उत्पन्न होता है। इसी प्रकार राग द्वेष इत्यादि नाना प्रकार की वासनाएँ जीव से ही पैदा होकर उसी के नेतनाधर्म को दबा देती और अशक्त कर डालती है / इन दोनों में अन्तर यही है कि जीव से राग द्वेष इत्यादि का सम्बन्ध अनादि काल से है किन्तु शैवाल और जल का सम्बन्ध अनादिकाल से नहीं है। इन बातों से सन्तुष्ट होकर शिष्य ने गुरुजी के चरणों में विनम्र भाव से प्रणाम किया। कठिन शब्दों के अर्थ / यथार्थ-ठीक / चिन्तामणि-वह स्वर्गीय रत्न जिसके द्वारा सब इच्छाएँ पूर्ण की जा सकती है। शेवाल-सेवार,पानी के ऊपर होने वाली हरे रंग की एक प्रकार की जानदार घास /