________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा पाठ 26 वाँ मक्षित धर्म-परीक्षा (गुरु शिष्य संवाद शिष्य- हे भगवन् ! संसार में अनेक जीव ऐसे हैं जो धर्म के यथार्थ रूप को नहीं जानते फिर भी उन्हें धर्म शब्द अत्यंत प्यारा लगता है / इसका क्या कारण है ? वत्स धर्म जीव का स्वरूप है धर्म हो जीव का स्वमराडार है इसीलिए धर्म शब्द सब को प्रिय लगता है। जब सांप के मंत्र का उच्चारण किया जाता है तो वह भी प्रसन्न होकर अपना जहर ठूस लेता है। इस प्रकार के मंत्र में सर्प की प्रशंसा रहती है जिससे वह प्रसन्न हो जाता है। इसी प्रकार धर्म जीव का स्वभाव है जिस के कारण वह उसको बड़ा प्रिय लगता है। शिष्य-महाराज ! संसार में लोग धर्म को शरीर से उत्पन्न होने वाला अथवा उसके द्वारा पूर्ण होने वाला बताते हैं किन्तु श्राप उसे जीव का स्वरूप बताते हैं अतएव इस विषय को और स्पष्ट करके समझाने की दया करें। गुरु- तुम जानते हो कि चतना जीव का लक्षण है, वहीं उसका धर्म है / चेतन में अनन्त गुण हैं जिनमें तीन मुख्य हैं-(१) सम्यग्ज्ञान (2) सम्यग्दर्शन (3) सम्यक् चारित्र / यह चेतना धर्म सदैव जीव में रहता है। निगोद (अर्थात् अत्यंत नीच अवस्था) में भी.चेतना धर्म