________________ (102) सेठिया जैन ग्रन्थमाला (गुलाब) नाहीं भूलि गुलाब तू! गुनि मधुकर गुंजार / यह बहार दिन चार की बहुरि कटीली डार // बहुरि कटीली डार होहिंगी ग्रीखम पाए / लुवै चलेंगी संग अंग सब जैहैं ताए // बरनै 'दीनदयाल' फूल जौलौं तो पाहीं / रहे घेरि चहुँ ओर फेरि अलि ऐहैं नाहीं // (निशाकर) दानी अमृत के सदा देव करै गुनगान / सुनो चंद! बंदै तुमैं मोदनिधान जहान // मोदनिधान जहान संभु सिर ऊपर धारें। देखि सिंधु हरखाय निकाय चकोर निहारें। बरनै 'दीनदयाल' सबै तुमको सुखखानी / एक चोर बरजोर घोर निर्दै दुखदानी // कोलाहल सुनि खगन के सरवर! जनि अनुरागि। ये सब स्वारथ के सखा दुरदिन दैहैं त्यागि // दुरदिन देह त्यागि तोय तेरो जब जैहै / दूरहिं ते तजि आस पास कोऊ नहिं पहै // बरनै 'दीनदयाल' तोहि मथि करिहैं काहल / ये चल छल के मूल भूल मति सुनि कोलाहल //