________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा उसका आधार है, अयोग्य हो जाता है तब वह दूसरा आधार अथवा दूसरा शरीर धारण करती है / ऐसा नहीं है कि शरीर के साथ प्रात्मा भी नष्ट हो जाती है / वह न कभी मिटती है न बनती है। वह अनादि और अनन्त है ! तथा पृथिवी इत्यादि पंच भूतों से बनी हुई नहीं है। ___ अात्मा के विषय में एक बार प्रदेशी राजा ने महाराज केशी श्रमगा से प्रश्नोत्तर किया था जो बहुत मनोरंजक और शिक्षाप्रद है। प्रदेशी राजा ने कहा- " महाराज ! एक बार की बात है कि हमारा कोतवाल एक चोर पकड़ कर लाया। मैंने उसे एक लोहे के कमरे में ढूंस दिया / कमरा इस ढंग का था कि उसमें बन्द कर देने पर हवा का भी प्रवेश न हो सकता था। थोड़ी देर बाद देखा कि चोर मरा हुआ पड़ा था। महाराज! यदि शरीर और आत्मा मिन पदार्थ होते तो आत्मा कहाँ चली जाती ? उसके बाहर निकलने का कोई भागन था। इससे नो ऐसा ज्ञात होता है कि दोनों एक ही हैं।" ___ राजा की बात सुन कर कशी श्रमण महाराज बोले- 'राजन् ! तुम्हारा कहना ठीक नहीं है / जीव अम्पी है। उसकी गति किसी से झक नहीं सकती। विद्र न होने पर भी जीव का गमन और आगमन हो सकता है। एक मकान को बिल्कुल बंद कर दो, एक भी छिद्र न रहे / फिर उसके अन्दर ढोल बजाया जाय तो तुम उसकी आवाज सुन सकते हो या नहीं ? अवश्य सुनोगे, जब मृतिक शाद विना छेद के बाहर निकल सकता है तो अमूतक आत्मा विना छेद के क्यों नहीं निकल सकती? अवश्य निकल सकती है ! तात्पर्य यह कि वेद न होने से आत्मा और शरीर की एकता नहीं सिद्ध होती।