________________ (82) सेठिया जैन ग्रन्थमाला न हो सके / व्यक्त- प्रकट, प्रकाशित / अव्यक्त- अप्रकाशित, अप्रकट / विलग- अलग। पाठ 23 वाँ बुढ़ापा (मनहरछंद) बालपनै बाल रह्यो पोछे गृहभार बह्यो, ... लोक लाज काज बांध्यो पापन को ढेर है। अपनी अकाजकीनोलोकन में जसलीनी, .. परभौ विसार दीनो बिगै वस जेर है // ऐसे ही गई विहाय अलप सी रही प्राय, नर परजाय यह श्रांधे की बटेर है। आये सेत भैया अब काल है अवैया ग्रहो, जानी रे सयाने तेरे अजौं हूं अधर है॥५॥ (मत्तगयंद सवैयः) बालपनै न सँभार सक्यो कछु, जानत नाहिं हिताहितही को। यौवन वैस वसी वनिता उर, के नित राग रह्यो लछमी को॥ यौं पन दो विगोइ दयो नर, डारत क्यों नरकै निज जी को। “माये हैं सेत प्रजौं शठ चेत 'गई सो गई अव राखरही को // 2 //