________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (83) (मनहरछंद) सार नर देह सब कारज को जोग येह, यह तो विख्यात बात वेदन में बंचे है / तामै तरुणाई धर्म सेवन को समै भाई, सेये तब विषै जैसे माखी मधु रचे है // मोहमद भाये धन रामा हित रोज रोये, . यों ही दिन खोये खाय कोदौजिम मचे है। अरे सुन बौरे अब आये सीस धोरे अजौं, सावधान होरे नर नरक सौं बचे है // 3 // (मत्तगयंद सवैया) बाय लगो कि बलाय लगी, मदमत्त भयौ नर भूलत त्यों हो। बृद्ध भये न भत्ते भगवान् , विषै विष-खात प्रघात न क्यों ही। सीस भयो बगुला सम सेत, रह्या उर अंतर शाम अजों ही / मानुषभौ मुकताफलहार गवार, तगा हित तोरत यों ही // 4 // दृष्टि घटी पलटी तन की छवि, बंक भई गति लंक नई है। हूस रही परनी घरनी अति, रंक भयौ परियंक लई है।। कांपत नार बहै मुख लार, महामति संगति छोरि गई है। अंग उपंग पुराने परे, तिसना उर और नवीन भई है // 5 // (कवित्त मनहर) रूपको न खोज रह्यो तरु ज्यों तुषार दहो, भयो पतझार किधौं रही डार सूनी सी। कृवरी भह है करि दुबरी भई है देह, उबरी इलेक आयु लेर मांहि पूनी सी // ....