________________ (60) सेठिया जैन प्रन्यमाला केई खाक पटके हैं केई खाक शटकै हैं, केई खाक लपटै हैं केई स्वांग श्रानिके॥ केई हाट बैठत हैं अम्बुधि में पैठत हैं, केई कान ऐठत हैं श्राप चूक जानिकै / एक सेर नाज काज अापनों शरीर त्याज, डोलत हैं लाज काज धर्मकाज हानिके // 1 // शिष्य को पढ़ावत हैं देह को बढ़ावत हैं, . हेम को गलावत हैं नाना छल ठानिकै। कौड़ी कौड़ी मांगत हैं कायर लै भागत हैं, .:. प्रात उठ जागत है स्वारथ पिछानिकै // कागद को लेखत हैं केई नख पेखत हैं, केई कृषि देखत हैं अपनी प्रमानिकै / एक सेर नाज काज आपनों शरीर त्याज, . डोलत हैं लाज काजधर्मकाज हानिकै॥२॥ फेई नट कला खेलें केई पट कला बेलें, केई घटकला झेलैं आप वैद्य मानिकै / केई नाच नाच प्राव केई चित्र को बनावें, केई देश देश धावें दीनता बखानिकै--॥ मूरख को पास चहैं नीचन की सेवा बहैं, चौरन के संग रहैं लोक लाज मानिकै।