________________ (78) सेठिया जैन ग्रन्थमाला सकती यह एक साधारण बात है परन्तु इसके कारणों में गहरा रहस्य है / अच्छा सुनो ।वही जान या देख सकता है जिसमें चेतनता हो / ज्ञान और दर्शन-शक्ति ही चेतनता का लक्षण है। हममें यह चेतनता है, लेखनी में नहीं है। जिसमें चेतनता होती है उसे जीव कहते हैं। तुम हम तथा अन्य जान, देख, सुन, चल फिर और बढ़ सकने वाले जितने पदार्थ हैं उन सब में चेतनता अथवा चैतन्य है अत एव वे सब जीव हैं। जीव अनन्तानन्त हैं। उनकी गिनती नहीं हो सकती। फिर भी विचार करें तो उन्हें दो भागों में बाँट सकते हैं / एक मुक्त और दूसरा संसारी / मुक्त उन्हें कहते हैं जो तपश्चरण आदि द्वारा सब प्रकार के कर्मों से दूर होकर वीतराग हो चुके हैं / जब सारे कर्मों का तय हो जाता है, तभी मुक्ति अवस्था प्राप्त होती है / संसारी जीव उन्हें कहते हैं जो कम के अधीन हो रहे हैं / इनके भी दो भेद हैं-त्रस और स्थावर। जिनमें त्रस नामक नाम कर्म है और जो चल फिर सकते हैं, वे त्रस कहलाते हैं। त्रस जीव भी दो प्रकार के हैं। सकल अथवा पंचेन्द्रिय एवं विकल ! जिनमें पांचों इन्द्रियां हैं वे सकलेन्द्रिय अथवा पंचेन्द्रिय त्रस कहलाते हैं और जिन के दो तीन या चार इन्द्रिया हैं वे विकलेन्द्रिय त्रस कहे जाते हैं। जिनमें स्थावर नामक कर्म का उदय है जिन्हें एक हो इन्द्रिय होती है उन्हें स्थावर जीव कहते हैं / स्थावर जीव पांच प्रकार के हैं / १पृथिवीकाय 2 जलकाय 3 तेजकाय 4 वायुकाय 5 वनस्पतिकाय / पृथिवी