________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (79) ही जिनका शरीर है वे पृथिवीकाय कहलाते हैं। जैसे बढ़ने वाले खानों के पत्थर / जल ही जिनका शरीर है वे जलकाय कहलाते हैं / इसी प्रकार पांचों के लक्षण समझना चाहिए / इन सब जीवों में शक्ति की अपेक्षा कुछ विभिन्नता नहीं है, परन्तु कर्मोद्य के कारण उनकी शक्तिया अव्यक्त हो रही हैं / जब अात्मा सब कर्मो से विलग हो जाता है तब उसको सब शक्तिया व्यक्त हो उठती हैं। उसी अवस्था को मोक्ष कहते हैं / ये जीवद्रव्य के स्वरूप और भेद हुए। मोहन--- दूसरा द्रव्य कौनसा है ? गुरु- जिसमें उपर्युक्त शक्तियों नहीं पायी जातीं वह जीव नहीं अर्थात् अजीब है। मुख्य द्रव्य यही दो हैं / इन में से अजीव के पाँच भेद हैं--(१ पुद्गल (2) धर्म (3) अधर्म (4) आकाश (5) काल / मोहन-पुदगल किसे कहते हैं ? गुरु- जिसे हम छू सकें . चख सके , संघ सकें , देख सकें वह पुद्गल द्रव्य है / दूसरे शब्दों में, जिसमें स्पर्श रस गंध और वर्ण (रंग) पाया जाय वह पुद्गल है / महेन्द्र- गुरुजी ! आप मुझे देख सकते हैं तो मैं पुद्गल हुआ / मैं सब विद्याथियों को देख रहा हूँ तो ये पुद्गल हुए / संसार के सभी मनुष्य एक दूसरे को देखते हैं तो वे सब पुद्गल हुए , किन्तु मनुष्यों में जानने और देखने की शक्ति है इसलिए उन्हें तो जीव कहना चाहिये / गुरु०- हा , एक मनुष्य दूसरे को देखता है, यह साधारण